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हिंदी शिक्षण

हिंदी शिक्षण

Hindi Pedagogy : भाषा से तात्पर्य

Hindi Pedagogy : भाषा मानव निर्मित व साधन है जिसमें मानव अपने भावों का विचार  विनिमय में एवं अभिव्यक्ति करता है। भाषा बालक के अनुकरण एवं प्रयास द्वारा अर्जित करने की चेष्टा है। यह पैतृक संपत्ति ना होकर अर्जित संपत्ति है।

Hindi Pedagogy : भाषा विकास का शिक्षा शास्त्र
Language Development Pedagogy

भाषा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के  भाष धातु शब्द से हुई है  जिसका अर्थ है बोलना या कहना होता है अर्थात भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है। भाषा के अवयव ध्वनि वर्ण तथा शब्दों के रूप में ही संप्रेषण को पूर्ण किया जा सकता है।

हिंदी भाषा शिक्षण के अभिलक्षण

Characteristics of Hindi Language Teaching

  • भाषा अभिव्यक्ति एवं विचार विनिमय का एक संकेतिक साधन है।
  • भाषा पैतृक संपत्ति ना होकर अर्जित संपत्ति है।
  • भाषा को अनुकरण एवं प्रयास द्वारा अर्जित किया जा सकता है।
  • भाषा संस्कृति एवं सभ्यता से जुड़ी रहती है।
  • भाषा के स्वरूप में विभिन्नता एवं    अनेकरूपता होती है।
  • भाषा गतिशील एवं परिवर्तनशील होती है।
  • भाषा  संश्लेषण आत्मक से विश्लेषणात्मक की ओर जाती है।

हिंदी भाषा शिक्षण का सिद्धांत

Principle of Teaching Hindi Language

भाषा शिक्षण एक ऐसी क्रिया है जिसके द्वारा बालक को हिंदी भाषा से संबंधित भाषा कौशलों में प्रवीणता प्रदान करके उसके चिंतन तथा अभिव्यक्ति को प्रभावशाली बनाया जाता है तथा बालक में हिंदी भाषा मिश्रण या मातृभाषा मिश्रण के अध्ययन की सामर्थ्य शक्ति विकसित की जाती है।

Hindi Pedagogy : भाषा मिश्रण का सिद्धांत
Theory of Language Mixing

Hindi Pedagogy : बालक जिस सामाजिक व्यवस्था में रहता है वहां से वह स्वयं सीखना शुरू कर देता है। प्रारंभिक दौर में अनुकरण द्वारा ध्वनियों को बोलना सीखता है और फिर दूसरों की ध्वनियों को समझ कर उसमें बातचीत करने की कोशिश करता है। बाद में वह उन कार्यों में व्यस्त हो जाता है जिसमें उसकी रूचि अधिक होती है। मिश्रण के समय भी बालक की इन स्वाभाविक रुचि ओं का ध्यान दिया जाना आवश्यक है। इससे बच्चा बड़ी सरलता से चीजों को ग्रहण कर लेता है। शिक्षण एक कला है और इस कला में प्रवीण होने के लिए अध्यापक को बालक की  रुचियां क्षमताओं योग्यताओं एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शिक्षण कार्य संपन्न करना चाहिए। इस प्रकार भाषा शिक्षण के सामान्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं

रुचि का सिद्धांत (Principle of Interest)


  • किसी वस्तु को दिखा कर।
  • उनकी योग्यता और क्षमता के अनुसार प्रश्न पूछ कर।
  • कक्षा खेल विधि का प्रयोग कर।
  • पूर्व ज्ञान के आधार पर नए ज्ञान को जोड़कर।
  • ज्ञान को बच्चों के जीवन के साथ जोड़कर।

क्रिया का सिद्धांत (Principle of Action)


  • शिक्षण के दौरान बच्चों को अधिक से अधिक क्रियाशील रखकर शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है जैसे
  • कक्षा में पढ़ाते समय आदर्श वाचन के पश्चात बच्चों से अनुकरण वाचन कराकर  शिक्षक बालकों को सक्रिय कर सकता है।
  • बच्चों को मौखिक वार्तालाप प्रश्न उत्तर कहानी कहना व सुनना आदि क्रियाओं द्वारा क्रियाशील रखा जा सकता है।
  • अर्जित ज्ञान लिखित रूप में अभिव्यक्त करने का अवसर देकर सक्रिय किया जा सकता है।

स्वाभाविकता का सिद्धांत (Naturalization Principle)

Hindi Pedagogy : बालक अपने माता या पिता की गोद से ही भाषा सीखना आरंभ करता है। बच्चे के अधिगम का प्रथम विद्यालय परिवार ही होता है जहां से वह प्रथम शिक्षा ग्रहण करता है। जैसे जैसे वह  वृद्धि करता  है आसपास के वातावरण से सीख कर ज्ञान में वृद्धि करता है। इस प्रकार  वह सुनना बोलना सीख जाता है।

व्यक्तिगत भिन्नता का सिद्धांत (Theory of Individual Variation)

कक्षा में जितने विद्यार्थी होते हैं सभी की बौद्धिक क्षमता अलग-अलग होती है। इसलिए सभी को रूचि के अनुसार सीखने पर बल देना चाहिए इसी के अनुरूप बालकों की सीखने की क्षमता भी अलग-अलग होती है इसलिए शिक्षक को उनकी भिन्नता वृत्तियों और योग्यताओं को ध्यान में रखकर शिक्षण कार्य संपन्न करना चाहिए।

 Hindi Pedagogy : अनुपात और  क्रम का सिद्धांत (Theory of Proportions And Order)


  • भाषा के दो रूप होते हैं लिखित और मौखिक। मौखिक पर अधिकार प्राप्त करने के लिए छात्र सुनता है और बोलता है तथा लिखित रूप पर अधिकार प्राप्त करने के लिए पढ़ने और लिखने के कौशल का अर्जन करता है। इसी रूप को ध्यान रखकर भाषा का शिक्षण करते हुए अध्यापक को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए
  • पहले बोलना चाहिए जिसे छात्र सुनकर समझने का प्रयास करें।
  • बाद में छात्रों को स्वयं बोलने का अवसर देना चाहिए तथा उनकी मौखिक अभिव्यक्ति के दोषों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
  • सुनना  व बोलना सिखाने के कुछ समय बाद बच्चों को पढ़ना सिखाना चाहिए जिससे कि वह दूसरों के लिखित विचारों को पढ़कर उनका अर्थ समझ सके।
  • अंत में छात्रों को अपने विचारों और भावों को लिखकर व्यक्त करना चाहिए। इससे बच्चों में सुनना बोलना पढ़ना और लिखना इन चारों कौशलों का विकास उचित अनुपात में होता है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।
  1. चयन का सिद्धांत।(Principle of Selection)
  2. बोलचाल का सिद्धांत।(The principle of Colloquialism)
  3. निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत।(Theory of Definite Purpose)
  4. अभ्यास का सिद्धांत।(Theory of Practice)
  5. नियोजन का सिद्धांत।(Principle of Planning)
  6. आकृति का सिद्धांत तथा अनुकरण का सिद्धांत।(Theory of Shape And Theory of Simulation)


Hindi Pedagogy : इस प्रकार हिंदी भाषा शिक्षण की क्रिया को सरल रोचक और प्रभावशाली बनाने के लिए उपयुक्त सिद्धांतों का प्रयोग करना चाहिए।

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