पाठ्यचर्या के प्रकार और सिद्धांत
Child Development And Pedagogy : पाठ्यचर्या
पाठ्यचर्या साध्य है तो पाठ्यक्रम साधन है। पाठ्यचर्या के सिद्धांतों का अनुपालन करके पाठ्यक्रम का निर्माण बालक के विकास के लिए किया जाता है। पाठ्यचर्या के गुणों व सिद्धांतों का समन्वय जब पाठ्यक्रम में हो जाता है तो प्रत्येक विषय विशेष का पाठ्यक्रम अपने आप में व्यापक हो जाता है और बालक के सर्वांगीण विकास में सहायता करता है।
पाठचर्या का अर्थ
पाठ्यचर्या का अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द ‘क्यूरीकुलम” है। क्यूरीकुलम शब्द की उत्पत्ति जिस लैटिन शब्द से हुई है उसका अर्थ है- “दौड़ का क्षेत्र”। यह वह क्षेत्र है जिसका चक्कर लगाकर व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है।
अभी तक हम सिलेबस और क्यूरिकलम को एक ही समझे हुए हैं। सिलेबस का निर्धारण आवश्यक है बिना उसके शिक्षा में स्थिरता नहीं आती। किंतु इसे ही करिकुलम समझ लेना भरम है। सिलेबस का निर्धारण अध्यापक को दृष्टि में रखकर होता है। अध्यापक को किसी स्तर पर किस विषय के अंतर्गत क्या पढ़ाना है इसका ज्ञान सिलेबस से हो जाता है किंतु सिलेबस है यह पता नहीं चलता कि छात्र को क्या करना है।
किंतु इससे भी अधिक ज्ञान उसे खेल के मैदान में मिलता है। आशाओं को सुनकर वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेकर वह नए अनुभव ग्रहण करता है। करिकुलम में यह सभी अनुभव सम्मिलित हैं। करिकुलम का निश्चय हम छात्र की दृष्टि से करते हैं। जबकि सिलेबस अध्यापक को दृष्टि में रखकर बनता है। करिकुलम की रचना छात्र को ध्यान में रखकर की जाती है। अभी तक हमने करिकुलम के नाम पर सिलेबस को ही प्रचलित कर रखा है।
पाठ्यचर्या में केवल विषयों का ज्ञान ही नहीं वरन इसमें छात्र के सभी अनुभव सम्मिलित हैं। पाठ्यचर्या को ही अंग्रेजी में करिकुलम कहा जाता है।
पाठ्यचर्या में निम्न बातें ध्यान रखनी चाहिए -
- पाठ्यचर्या की योजना में वर्तमान सामुदायिक जीवन की आवश्यकताओं की अनुकूलता का ध्यान रखना चाहिए।
- पाठ्यचर्या के अंतर्गत समस्त विद्यालय वातावरण, सभी प्रकार के संपर्क, पठन, क्रियाएं एवं विषय सम्मिलित करने चाहिए।
- पाठ्यचर्या में बच्चों के जीवन में आने वाली समस्त क्रियाओं और समस्याओं को शामिल करना चाहिए।
- पाठ्यचर्या को गतिशील होना चाहिए।
- पाठ्यचर्या में केवल सैद्धांतिक ही नहीं वरन अनुभवजन्य बातों को भी शामिल करना चाहिए।
- पाठ्यचर्या को बालक के व्यक्तित्व के संतुलित विकास में सहायक होना चाहिए।
- पाठ्यचर्या में व्यवसाय, उत्पादन, उपलब्धियां, अभ्यास क्रियाएं आदि सभी चीजें शामिल होनी चाहिए।
Child Development And Pedagogy : वर्तमान पाठ्यचर्या के दोष
भारत में माध्यमिक विद्यालयों में आजकल जो पाठ्यचर्या प्रचलित है वह दोषपूर्ण है। जो कि निम्नांकित प्रकार से हैं -
- वर्तमान पाठचर्या को संकुचित दृष्टिकोण से निर्मित किया गया है।
- इसमें पुस्तक एवं सैद्धांतिक ज्ञान पर अधिक बल दिया गया है।
- पाठ्यचर्या को अनावश्यक तथ्यों एवं सूचना विवरणों से लाद दिया गया है और स्मृति पर बहुत फर्क पड़ता है।
- इसमें महत्वपूर्ण एवं संपन्न सामग्री का अभाव है।
- इसमें क्रियात्मक एवं व्यवहारिक कार्यों के लिए अपर्याप्त स्थान है।
Child Development And Pedagogy : पाठ्यचर्या के प्रकार
पाठ्यचर्या के कुछ प्रमुख रूपों का उल्लेख नीचे किया जा रहा है -
- शिक्षक केंद्रित पाठ्यचर्या - जिस पाठ्यचर्या में अध्यापक की रुचि, आवश्यकता, योग्यता एवं अनुभव को ध्यान में रखा जाता है उसे शिक्षक केंद्रित पाठ्यचर्या कहते हैं। इसका प्रचलन प्राचीन काल में अधिक था।
- विषय केंद्रित पाठचर्या - इस पाठ्यचर्या में विभिन्न विषयों को अलग-अलग बांट दिया जाता है और प्रत्येक विषय के शिक्षण की व्यवस्था की जाती है। इस प्रकार की पाठ्यचर्या अमनोवैज्ञानिक है।
- बाल केंद्रित पाठ्यचर्या - इस प्रकार की पाठ्यचर्या में बालक की रुचि, योग्यता और अभिवृत्ति का ध्यान रखा जाता है। इसके निर्माण में बालक को केंद्र में रखा जाता है। यह पाठ्यचर्या मनोवैज्ञानिक है और अनेक आधुनिक शिक्षण पद्धतियों में इसे स्थान दिया गया है।
- क्रिया केंद्रित पाठ्यचर्या - इसमें विभिन्न क्रियाओं का महत्व दिया जाता है। इसके द्वारा विभिन्न सामाजिक क्रियाओं को संपन्न करके बालक शिक्षा प्राप्त करता है। प्रयोजनवाद के मनोवैज्ञानिकों जैसे जॉन डीवी, किलपैट्रिक आदि।
- अनुभव केंद्रित पाठ्यचर्या - इस प्रकार के पाठ्यचर्या में अनुभवों का समय समावेश करने की बात कही जाती है। इनसे बालक को प्रेरणा मिलती है। इन अनुभव या प्रेरणा से बालक अपने जीवन को सफल बनाने में कामयाब होते हैं। इसका समर्थन टी पी नन ने सर्वाधिक किया है।
- शिल्प केंद्रित पाठ्यचर्या - इसमें कताई,बुनाई, कृषि, बढ़ाईगिरी, लोहारगिरी, धातुकर्म, सिलाई जैसे किसी शिल्प को केंद्र मानकर उसी के आसपास अन्य विषयों की योजना बनाई जाती है। इस पाठ्यचर्या का समर्थन महात्मा गांधी, डॉ जाकिर हुसैन, विनोबा भावे, आर्यानायकम ने सर्वाधिक किया है। बेसिक शिक्षा में इसी पाठ्यक्रम को अपनाने की बात कही गई है।
- कोर पाठ्यचर्या - इस प्रकार की पाठ्यचर्या में कुछ विषय व क्रियाएं अनिवार्य होती हैं और कुछ ऐच्छिक। जैसे भाषा, गणित जैसी कुछ क्रियाएं सबके लिए अनिवार्य होती हैं। इस पाठ्यचर्या का विकास अमेरिका में हुआ है।
- एकीकृत पाठ्यचर्या - इस प्रकार की पाठ्यचर्या में सभी विषयों और क्रियाओं को जोड़ा जाता है। विषयों में साहचर्य एवं संबंध द्वारा पाठ्यचर्या को एकीकृत किया जाता है।
Child Development And Pedagogy : पाठ्यचर्या निर्माण के सिद्धांत
पाठ्यचर्या निर्माण के सिद्धांत निम्नांकित हैं -
- बालक की आवश्यकता एवं रूचि का ध्यान रखना चाहिए।
- बालक की सामाजिक आवश्यकताओं का ध्यान रखना चाहिए।
- पाठ्यक्रम में उपयोगिता का सिद्धांत अनिवार्य होना चाहिए।
- पाठ्यचर्या को इस प्रकार बनाना चाहिए कि वह छात्रों को रचनात्मक कार्यों का अवसर प्रदान करें।
- पाठ्यचर्या में खेल तथा कार्य के अवसर प्रदान किए जाएं और संभव हो तो दोनों की समन्वित शिक्षा दी जाए।
- व्यवहार के आदर्शों की प्राप्ति का सिद्धांत शामिल होना चाहिए अर्थात जीवन संबंधी समस्त क्रियाओं, बालक के स्वास्थ्य, मनन, बौद्धिक विकास, कौशल आदि की उन्नति के लिए अवसर मिलने चाहिए।
- पाठ्यचर्या को कभी भी स्थिर नहीं होना चाहिए इसमें विकास के सिद्धांत का पालन करना चाहिए।
Child Development And Pedagogy :माध्यमिक शिक्षा आयोग :पाठ्यचर्या के सिद्धांत
माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार पाठ्यचर्या के सिद्धांत निम्नांकित हैं -
- पाठ्यचर्या मैं बालक के समस्त अनुभवों का समावेश होना चाहिए।
- पाठ्यचर्या में पर्याप्त विविधता और लचीलापन होना चाहिए।
- पाठ्यचर्या सामुदायिक जीवन से संबंधित होनी चाहिए।
- पाठ्यचर्या में अवकाश का सदुपयोग करने की प्रेरणा देनी चाहिए।
- पाठ्यचर्या में विषयों का पारस्परिक संबंध होना चाहिए।
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