बाल विकास में दंड एवं पुरस्कार की भूमिका

बाल विकास में दंड एवं पुरस्कार की भूमिका

Role of Punishment and Award in Child Development

Child Development And Pedagogy : पुरस्कार एक प्रकार की अभिप्रेरणा है जो मनोविज्ञान पर आधारित है। पुरस्कार प्राप्त करके बालक को सुख की अनुभूति और गौरव प्राप्त होता है और वह अनुभूति से प्रेरित होकर अच्छे तरीके से अधिगम कार्य संपन्न करने का प्रयास करता है।
पुरस्कार वांछित कार्य के साथ सुखद साहचर्य स्थापित करने का साधन है। इसके साथ ही पुरस्कार व्यक्ति में अच्छा कार्य करने की भावना जागृत करता है।

Child Development And Pedagogy : पुरस्कार

पुरस्कार निम्न दो प्रकार के होते हैं

भौतिक पुरस्कार -  इसके अंतर्गत भेंट, पुस्तकें, लिखने  पढ़ने की सामग्री तथा अन्य वस्तुएं आ जाती हैं।

सामाजिक या आध्यात्मिक पुरस्कार -  इसके अंतर्गत पद विशेष के लिए चुनाव, पदोन्नति, प्रशंसा, सम्मान सूचक उपाधि तथा सम्मान सूचक प्रमाण पत्र आते हैं।

सरल रूप में पुरस्कार को दो भागों में विभाजित किया गया है

मूर्त पुरस्कार -  प्रमाण पत्र, प्रगति पत्र, छात्रवृत्ति, अन्य उपयोगी वस्तुएं, सम्मानित पद, मेडल कप और शील्ड।

अमूर्त पुरस्कार -  प्रशंसा, छात्र के प्रति कृपा दृष्टि होना।
पुरस्कार देने से लाभ

पुरस्कार प्राप्त करने की अनुभूति के साथ पढ़ने या किसी कार्य का साहचर्य स्थापित हो जाने पर, छात्र अधिक रुचि और उत्साह से पढ़ने का कार्य करते हैं।
अध्यापकों, माता-पिता तथा अभिभावकों को प्रसन्नता होती है।
पुरस्कृत छात्रों द्वारा विद्यालय का नाम भी ख्याति प्राप्त करता है।
पुरस्कार एक प्रेरक के रूप में विद्यार्थियों को क्रियाशील बनाए रखता है।
पुरस्कार से हानियां

बालकों के मन में निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के स्थान पर पुरस्कार पाने की भावना प्रबल हो जाती है।
पुरस्कार पाने के लालच में बालक अवांछनीय तरीकों का प्रयोग करते हैं।
पुरस्कार द्वारा केवल  योग्य छात्र ही प्रभावित होते हैं, दूसरे छात्रों में निराशा की भावना पैदा होती है।
छात्र परीक्षा का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए, अध्ययन के या शिक्षा के मुख्य लक्ष्य को भूल जाते हैं।

Child Development And Pedagogy : दंड


दंड एक निषेधात्मक प्रेरणा है, इसका उद्देश्य किसी कार्य विशेष के प्रति निषेध करना होता है। दंड से भय उत्पन्न किया जाता है। जिस प्रकार बालक पुरस्कार प्राप्त करके सुख की अनुभूति करता है उसी प्रकार दंड प्राप्त करके बालक दुखी हो जाता है। दुख का मतलब उसे शारीरिक, मानसिक, आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टि से कष्टप्रद स्थिति में रखना है। दंड का भय एक तीव्र प्रेरणा है। अधिगम के क्षेत्र में अनुचित कार्यों से विमुख करने के लिए बालक को दंड दिया जाता है। दंड के भय से बालक अनुचित कार्यों तथा  अपराध को करने का साहस नहीं कर पाता।

दंड वह साधन है जो अवांछनीय कार्य के साथ दुखद भावना को संबंधित करके उसे दूर करने का प्रयत्न करता है। वास्तव में दंड एक अवांछनीय व्यवहार को दूर करने का दमनात्मक साधन है।

दंड के प्रकार

शारीरिक दंड - शारीरिक दंड का प्रयोग नवीन शिक्षा प्रणाली तथा मध्यकालीन शिक्षा प्रणाली में किया जाता था। मध्यकालीन शिक्षा प्रणाली में छात्रों को कठोर शारीरिक दंड जैसे मुर्गा बनाना, छड़ी मारना, कान  पकड़ना, पेड़ पर हाथ पैर बांधकर लटका देना आदि आते हैं। इस प्रकार के दंड को वर्तमान समय में निषेध कर दिया गया है। शिक्षा मनोविज्ञान में शारीरिक दंड देने का विरोध किया है, किंतु आवश्यकता पड़ने पर शारीरिक दंड दिया जा सकता है।

आर्थिक दंड - विद्यालय में छात्रों को कई कारणों से आर्थिक दंड दिया जाता है जैसे विद्यालय में या कक्षा में अनुपस्थित रहना, कक्षा का कार्य पूरा ना करना, विद्यालय में उद्दंडता दिखाना आदि। इस प्रकार के दंड का प्रभाव छात्रों पर ना पढ़कर अभिभावकों पर पड़ता है । अतः इस दंड का समर्थन नहीं किया जा सकता।

सामाजिक दंड - सामाजिक दंड अधिक प्रभावशाली होता है। इस दंड में छात्रों को दूसरों के सामने लज्जित किया जाता है जैसे कक्षा के बाहर निकाल देना, कक्षा में सबसे पीछे बैठाना, कक्षा के सब छात्रों से अपराधी छात्र से बातचीत करने के लिए मना करना, खेलकूद में भाग न लेने देना आदि।

मानसिक श्रम का दंड - इस प्रकार के दंड में बालकों से मानसिक परिश्रम कराया जाता है। जैसे बालक गृह कार्य नहीं करता है तो उसे अवकाश के समय में या विद्यालय बंद होने के बाद रोक कर उस कार्य को पूरा करने का आदेश दिया जाता है। या फिर बालक अगर लिखने में अशुद्धि करता है तो उसे उस अशुद्धि को पुनः कई बार लिखने के लिए कहा जा सकता है।

मनोवैज्ञानिक दंड - मनोवैज्ञानिक दंड का संबंध भावनाओं से होता है। इसके अंतर्गत डांटना फटकारना, झीड़कना, बुराई करना, अपमानित करना, आचरण के अंक काटना, अवकाश के समय काम करना, बेंच पर खड़ा कर देना, भयभीत करना या फिर सुविधाओं से वंचित कर देना आदि आते हैं।

वैधानिक दंड - आजकल कुछ विद्यार्थी पर आया इस प्रकार का अपराध करने लगते हैं जिससे कि कभी-कभी कानून की शरण भी लेनी पड़ती है। इस प्रकार के दंड में छात्र को विद्यालय से निष्कासित कर दिया जाता है और उसके किसी अन्य जगह पर प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है।
दंड के लाभ

दंड देने से निम्नांकित लाभ होते हैं

दंड से  बालक में सुधार होता है।
दंड देने से बालक में अपराधों में कमी आती है।
दंड से बालक में अनुशासन स्थापित करने में सहायता मिलती है।
दंड के परिणाम को समझ लेने पर बालक स्वयं अपना सुधार करने का प्रयत्न करता है।
Child Development And Pedagogy : दंड से हानियां

दंड से निम्नांकित हानियां होती हैं

दंड का संबंध भय संवेग से होता है। दंड के भय से बालक का संवेगात्मक संतुलन ठीक नहीं रहता, जिससे उसके बौद्धिक विकास में बाधा पड़ती है।
दंड देने से कुछ बालक अभ्यस्त हो जाते हैं और उन पर दंड का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
दंड का प्रभाव स्थाई नहीं होता। दंड के भय से बालक थोड़ी देर तो ठीक रहते हैं और उसके बाद फिर भी उसी प्रकार का अपराध करते हैं।
दंड के कारण, दंड देने वाले के प्रति ईर्ष्या द्वेष तथा बुरी भावनाएं उत्पन्न होती हैं और मन में प्रतिशोध की भावना बनी रहती है। 

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