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बाल विकास के सिद्धांत | Bal Vikash Ke Siddhant part 2

बाल विकास के सिद्धांत (Part 2)

बाल विकास के सिद्धांत अलग-अलग अवस्थाओं के लिए भिन्न भिन्न होते हैं। जैसे गर्भावस्था से लेकर मध्य शैशवावस्था काल तक के विकास विशेष रूप से शारीरिक विकास कहलाते हैं और शैशवावस्था काल के मध्य से लेकर जीवन पर्यंत या किशोरावस्था तक के विकास मानसिक और शारीरिक दोनों रूपों में दृष्टिगोचर होते हैं।

शारीरिक विकास से संबंधित प्रश्न पेपर 1 में कक्षा 1 से 5 के लिए और सामाजिक व व्यक्तित्व विकास से संबंधित प्रश्न पेपर 2 कक्षा 6 से 8 में अधिक पूछे जाते हैं। आइए पहले प्रारंभिक अवस्था के विकास के सिद्धांतों का अध्ययन करते हैं। 


विकास का एक निश्चित प्रतिरूप

विकास का एक निश्चित प्रतिरूप होता है अर्थात एक ही वंशानुक्रम के गुण धारण करने वाले बालकों में विकास की गति तथा सीमा एक सी होती है। विकास के इस निश्चित प्रतिरूप के दो नियम है जो इस प्रकार हैं-

मस्तिक से नीचे की ओर का नियम

मस्तिक से नीचे की ओर के नियम को सिर से पैरों की ओर विकास का नियम भी कहते हैं। इसमें विकास मस्तिक से शुरू होकर के पैरों तक जाकर खत्म होता है। इस विकास की प्रक्रिया में खासतौर से शारीरिक विकास देखने के लिए मिलता है।

निकट से दूर का नियम

निकट से दूर के नियम में बालक के अंदर पहले शारीरिक भागों के केंद्र में विकास और उसके बाद दूरस्थ भागों में विकास देखने के लिए मिलता है। उदाहरण के लिए पेट और सर में क्रियाशीलता जल्दी आती है जबकि अन्य भागों में विकास केंद्रीय भादो के विकास के बाद होता है।

सामान्य से विशिष्ट की ओर

सामान्य से विशिष्ट की ओर की इस प्रक्रिया में संपूर्ण  शरीर का  सामान्य विकास पहले होता है तथा विशिष्ट अंगो का बाद में होता है।

विकास निरंतर प्रक्रिया है

विकास की गति निरंतर होती है यह एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। किसी भी व्यक्ति के अंदर विकास की प्रक्रिया गर्भावस्था से शुरू होकर जीवन पर्यंत चलती रहती है। अतः इस प्रक्रिया को या विकास को विकास की निरंतर प्रक्रिया कहा जाता है।

विकास में व्यक्तिगत भेद होता है

विकास में वंशानुक्रम के आधार पर व्यक्तिगत भेद पाया जाता है। वंशानुक्रम के आधार पर प्राप्त सील गुणों के कारण कोई कोई बालक सारे के विकास और मानसिक विकास काफी तीव्र गति से करता है। इसके अलावा विकास के व्यक्तिगत भेद के अंदर लैंगिक विभिन्नता को भी माना जाता है। अर्थात बालक बालिका के विकास क्रम में भी व्यक्तिगत भेद पाया जाता है। जिसमें बालक के अपेक्षा बालिका शारीरिक और मानसिक रूप से तेज गति से विकास करती है।

विकास क्रम का सिद्धांत

विकास क्रम के सिद्धांत में गर्भावस्था से लेकर शैशवावस्था में विकास का एक निश्चित सिद्धांत होता है जिसको आप नीचे दिए गए चित्र के माध्यम से आसानी से समझ सकते हैं। इस रेखा चित्र में प्रत्येक अवस्था काल में एक बालक के विकास में क्या चीजें संपन्नता लाती हैं उन सभी का वर्णन किया गया है जो कि आपके परीक्षा की दृष्टि से काफी उपयोगी है।


विकास की गति में विभिन्नता पाई जाती है

विकास की गति कभी तीव्र होती है कभी मंद होती है। ऐसा बालक के अंदर उसके वंशानुक्रम के गुण और वातावरण ही प्रभाव के कारण हो सकता है। आगे के आने वाले चैप्टर अधिगम के पठार में हम इस सिद्धांत को और भी आसानी से समझ सकते हैं जिसमें अधिगम के पठार के अंतर्गत यह बताया गया है कि विकास की गति निरंतर परिवर्तित होती रहती है कभी वह एक समान नहीं रहती।

परिपक्वता और सीखने का सिद्धांत 

विकास परिपक्वता और सीखने का परिणाम होता है। सीखने को अन्य शब्दों के रूप में परिभाषित कर सकते हैं जैसे शिक्षण या अभ्यास का होना।

विकास की अंतः क्रिया का सिद्धांत

विकास के अंतः क्रिया सिद्धांत के अंतर्गत वंशानुक्रम और वातावरण की अंतः क्रिया शामिल होती है। अर्थात कोई बालक अपने वंशानुक्रम के प्रभाव के कारण  शीघ्रता से सीख सकता है। इसके साथ ही वातावरण भी एक प्रभाव कारी कारक है विकास के सिद्धांत में जिसका प्रभाव बालक के व्यक्तित्व पर साफ देखा जा सकता है और इसके साथ ही अगर उसे सही पोषण सही वातावरण नहीं मिलता है तो इसका प्रभाव शारीरिक विकास पर भी पर लक्षित होता है।

बालक के विकास के सिद्धांतों को अच्छे तरीके से आप को पढ़ लेना चाहिए ताकि आप प्रश्नों का जवाब सही तरीके से दे सके लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि विकास के सिद्धांत आपको आसानी से समझ में आ जाए तो आपको विकास के प्रभावित करने वाले कारकों को भी समझना होगा इसका अध्ययन हम अपने नेक्स्ट टॉपिक में करेंगे।

बालक के विकास के सिद्धांत के पांच प्रमुख आधार

बालक के विकास के सिद्धांत

बच्चों के विकास के सिद्धांत को समझने से पहले हम एक बार पुनः बाल विकास की अवधारणा को सारांश में समझने का प्रयास करेंगे। इसमें दो शब्दों को पहले हम समझेंगे जो इस प्रकार हैं।


बालक-  गर्भावस्था से लेकर किशोरावस्था तक के मानव को यानी जिसकी उम्र लगभग 12 वर्ष तक हो उसे बाल मनोविज्ञान में बालक कहा गया है।


विकास-  गर्भावस्था से किशोरावस्था तक रचनात्मक परिवर्तन से लेकर हराश अवस्था तक विकास की उत्पत्ति वृद्धि तथा अपकर्ष में आने वाले क्रमिक परिवर्तन का योग है विकास।


बच्चों के विकास के सिद्धांत के पांच प्रमुख आधार स्तंभ है-
  • फिजिकल
  • कॉग्निटिव
  • लैंग्वेज
  • सोशल
  • इमोशन

इसके साथ ही बाल विकास में आयु प्रवृत्ति संबंधी अध्ययन विशेष रुप से चिंतन, समस्या, समाधान, सृजनात्मकता, नैतिक तर्क एवं व्यवहार, अभिवृत्ति आदि क्षेत्रों में किए जाते हैं।

यहां पर बच्चों के विकास का सिद्धांत प्रत्येक अवस्था के लिए अलग-अलग होता है। गर्भावस्था से लेकर शैशवावस्था के मध्यकाल तक केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा में पेपर 1 कक्षा 1 से 5 के लिए आधारभूत प्रश्न पूछे जाते हैं।
शैशवावस्था के मध्य काल से लेकर किशोरावस्था के अंत तक केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा में पेपर 2 के कक्षा 1 से 8 के लिए आधारभूत प्रश्न पूछे जाते हैं।

बच्चों के विकास के सिद्धांत में कुछ नए पक्ष परिपक्वता के साथ-साथ जुड़ते चले जाते हैं। यह निम्नांकित प्रकार से हैं।
  • शारीरिक विकास
  • गत्यात्मक विकास
  • मानसिक विकास
  • सामाजिक विकास
  • भाषा विकास
  • संवेगात्मक विकास
  • चारित्रिक विकास
  • स्मृति विकास
  • नैतिक विकास
  • प्रतिमा तथा कल्पना का विकास
  • धार्मिक विकास
  • ध्यान एवं रुचि का विकास
  • प्रत्यक्षीकरण का विकास
  • चिंतन का विकास
  • तर्क का विकास
  • निर्णय का विकास
  • सौंदर्य आत्मक विकास
  • खेल का विकास
  • व्यक्तित्व का विकास 

विकास के निर्धारक तत्व

विकास क्यों होता है? यह एक स्वाभाविक प्रश्न है। आईए  इसको समझते हैं। विकास को निर्धारित करने के लिए दो कारण प्रमुख हैं।
  • परिपक्वता।
  • सीखना। 

परिपक्वता  

परिपक्वता एक जीव शास्त्री शब्द है यानी कि बायोलॉजिकल वर्ड है। मनुष्य को अनुवांशिक रूप से जो शील गुण प्राप्त होते हैं वह विकास की प्रक्रिया को अधिक परिपक्व बनाते हैं। अर्थात परिपक्वता एक वंशानुक्रम प्रक्रिया है। इसमें शारीरिक व मानसिक विकास का क्रमिक रूप शामिल होता है। यह एक गुणात्मक परिवर्तन होता है।

सीखना  

वातावरण के संपर्क में आकर जो अनुभव एवं अभ्यास प्राप्त करते हैं जिसके कारण वंशानुक्रम में व्यवहारिक परिवर्तन होता है सीखना कहलाता है। सीखना एक वातावरणीय प्रक्रिया है। सीखने का अर्थ व्यवहार में स्थाई प्रगति पूर्ण स्थानांतरण का होना है।

एक प्रमुख बात-  सीखने की प्रक्रिया परिपक्वता पर आधारित है परंतु परिपक्वता सीखने पर आधारित नहीं होता है।

छात्रों में व्यक्तित्व का विकास और सह पाठ्यचर्या या सह पाठयक्रम गतिविधि

छात्रों में व्यक्तित्व का विकास

सह पाठ्यचर्या/सह पाठयक्रम गतिविधि

छात्रों में व्यक्तित्व का विकास
छात्रों में व्यक्तित्व का विकास और सह पाठ्यचर्या या सह पाठयक्रम गतिविधि

शिक्षक पात्रता परीक्षा: सह पाठयक्रम गतिविधियां पाठ्येतर गतिविधियों के रूप में जानी जाती हैं, जो गैर-शैक्षणिक पाठ्यक्रम हैं। यह बच्चे और छात्रों के व्यक्तित्व विकास को विकसित करने में मदद करता है। बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए भावनात्मक, शारीरिक, आध्यात्मिक और नैतिक विकास आवश्यक है, जहाँ सह-पाठ्यचर्या की गतिविधियाँ एक पूरक का काम करती हैं। यह एक ऐसी गतिविधि है जो आपके विभिन्न विकास जैसे बौद्धिक विकास, भावनात्मक विकास, सामाजिक विकास, नैतिक विकास और सौंदर्य विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

सह पाठयक्रम गतिविधियों की परिभाषा

शिक्षक पात्रता परीक्षा: सह पाठयक्रम गतिविधियां एक पाठ्यक्रम है जो मुख्य पाठ्यक्रम के पूरक के रूप में काम करता है। यह पाठ्यक्रम का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है जो छात्रों के व्यक्तित्व को विकसित करने के साथ-साथ कक्षा की शिक्षा को मजबूत करने में मदद करता है। इस प्रकार का कार्यक्रम नियमित स्कूल समय के बाद आयोजित किया जाता है इसलिए इसे पाठ्येतर गतिविधियों के रूप में जाना जाता है।

इंडोर सह पाठयक्रम गतिविधियों

नाटक

संगीत और नृत्य

चित्रकारी और रंगाई

सजावट

क्ले मॉडलिंग

प्राथमिक चिकित्सा

सिलाई

रंगोली

बुक बाइंडिंग

कार्ड बोर्ड कार्य

चमड़ा कार्य

आयोजन स्कूल पंचायत

कला और शिल्प

आउटडोर सह पाठयक्रम गतिविधियों

सामूहिक परेड

सामूहिक ड्रिल

योग

व्यायाम

सायक्लिंग

बागवानी

क्रिकेट

फुटबॉल

बास्केटबॉल

वॉलीबॉल

कबड्डी

खो-खो

हाथ बॉल

लंबी पैदल यात्रा

समूह प्रार्थना

सुबह की बैठक

पाठ्यक्रम गतिविधियाँ छात्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि हम वर्तमान में सभी छात्रों के समग्र विकास के बारे में बात कर रहे हैं और समग्र विकास में शैक्षणिक और पाठ्येतर दोनों गतिविधियाँ शामिल हैं। सहक्रियात्मक गतिविधियों के कारण छात्र स्वस्थ और मुक्त महसूस करते हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं।

सह-पाठ्यचर्या संबंधी गतिविधियों में छात्रों की भूमिका छात्र को सह-पाठ्यचर्या संबंधी गतिविधियों के

माध्यम से व्यावहारिक ज्ञान का अनुभव जानने के लिए मिलता है। काफी हद तक यह वर्ग शिक्षण और प्रशिक्षण को मजबूत करता है। बौद्धिक व्यक्तित्व के लिए कक्षा कक्ष शिक्षण आवश्यक है जबकि सौंदर्य विकास, चरित्र निर्माण, आध्यात्मिक विकास आदि में सह-पाठयक्रम गतिविधियाँ आवश्यक हैं। यह स्कूल और कॉलेज के छात्रों के बीच समन्वय, समायोजन, भाषण प्रवाह आदि विकसित करने में मदद करता है।

सह-पाठयक्रम गतिविधियों के लाभ

हालांकि सह-पाठयक्रम गतिविधियों के कई लाभ हैं। लेकिन यहाँ कुछ महत्वपूर्ण लाभ हैं: -

सह-पाठयक्रम गतिविधियाँ खेल, अभिनय, गायन और गायन को प्रोत्साहित करती हैं।

खेलकूद, वाद-विवाद में भागीदारी, संगीत, नाटक आदि जैसी गतिविधियाँ शिक्षा को पूरा करने में मदद करती हैं।

यह छात्रों को बहस के माध्यम से खुद को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने में सक्षम बनाता है।

खेल बच्चों को फिट और ऊर्जावान बनने में मदद करते हैं।

स्वस्थ प्रतिस्पर्धी भावना को विकसित करने में मदद करता है।

ये गतिविधियां बताती हैं कि किसी भी कार्य को संगठित तरीके से कैसे किया जाए, विभिन्न परिस्थितियों में कौशल, सहयोग और समन्वय कैसे विकसित किया जाए।

यह समाजीकरण, आत्म-पहचान और आत्म-मूल्यांकन का अवसर प्रदान करता है।

यह आपको निर्णय लेने में परिपूर्ण बनाता है।

यह अपनेपन की भावना विकसित करने में मदद करता है।

स्कूल में आयोजित पाठ्यक्रम गतिविधियाँ पाठ्यक्रम गतिविधियों में

शिक्षक की भूमिका शिक्षक

एक अच्छा योजनाकार होना चाहिए ताकि विभिन्न गतिविधियों को व्यवस्थित तरीके से पूरा किया जा सके।

शिक्षक का यह कर्तव्य होना चाहिए कि वह पाठ्यक्रम गतिविधियों को करते हुए बच्चों को अधिक से अधिक अवसर प्रदान करे।

शिक्षक एक अच्छा आयोजक होना चाहिए ताकि छात्रों को इसका अधिक लाभ मिल सके।

शिक्षक एक अच्छे आयोजक होने चाहिए ताकि छात्रों को अधिकतम अनुभव प्राप्त हो।

शिक्षकों को निर्देशकों, रिकॉर्डर्स, मूल्यांकनकर्ताओं, प्रबंधन, निर्णय निर्माताओं, सलाहकारों, प्रेरकों, प्रेरकों, समन्वयकों के रूप में भी कार्य करना चाहिए, ताकि छात्र और बच्चे सह-पाठ्यचर्या संबंधी गतिविधियों के सर्वोत्तम पहलुओं से लाभ उठा सकें।

सुझाव:

हमें बच्चों को उचित सुविधाएं प्रदान करने की आवश्यकता है क्योंकि छात्र केवल तब ही अच्छा प्रदर्शन कर पाएंगे जब सब कुछ उपलब्ध होगा।

यदि छात्र या स्कूल के पास सभी आवश्यक चीजें नहीं हैं जो छात्र को उस समय खेलना है, तो छात्र अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएगा।

खेल शुरू करने से पहले, हमें छात्रों को बताना चाहिए कि यह खेल एक स्वस्थ प्रतियोगिता है, इसमें अपना गुस्सा न दिखाएं और न ही किसी से अपनी दुश्मनी निकालें।

हमें छात्रों को उचित मार्गदर्शन प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि वे अपने खेल अच्छे से खेल सकें।

पर्यावरण संरक्षण में पाठ्यक्रम सहवर्ती गतिविधियां 

पर्यावरण संरक्षण के लिए पाठ सहवर्ती गतिविधियों को चलाने के लिए पर्यावरण-क्लबों की स्थापना की जाएगी, जो 30 से 50 बच्चों के समूह होंगे जो पर्यावरण संरक्षण में रुचि रखते हैं। इसमें स्कूल से चुने गए शिक्षक अपनी रुचि और पर्यावरण के साथ जुड़ाव के आधार पर अपनी गतिविधियों का संचालन करेंगे।

योजना का उद्देश्य

बच्चों को पर्यावरण और उसकी समस्याओं से अवगत कराना है।

स्कूली बच्चों को पर्यावरण शिक्षा के अवसर प्रदान करना।

समाज में जागरूकता के लिए बच्चों की शक्तियों का दोहन करना।

पर्यावरण और विकास में बच्चों की निर्णायक भागीदारी को प्रोत्साहित करना।

बच्चों को पर्यावरणीय समस्याओं और उनके निदान के लिए जागरूक करना।

बच्चों को उनके आसपास के पर्यावरण कार्यक्रमों से जोड़ना।

निगरानी समिति में

जिला मजिस्ट्रेट अध्यक्ष, प्रभागीय वन अधिकारी-सदस्य, प्रदूषण बोर्ड और सीएमओ-सदस्य, गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि-सदस्य, चयनित स्कूलों के प्रभारी सदस्य, संसाधन एजेंसी के प्रतिनिधि-सदस्य और डीआईओएस-सचिव होंगे।

समाज में समाज, समाज द्वारा शिक्षा दी जाती है। शिक्षक और समाज के बीच घनिष्ठ संबंध है। शिक्षा समाज में बदलाव लाने का एक सार्थक और शक्तिशाली साधन है। यह शिक्षा की प्रक्रिया के माध्यम से ही है कि नए युवाओं में ऐसे गुण विकसित किए जा सकते हैं जो स्वस्थ समाज के लिए वांछनीय है। बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए निम्नलिखित पहलुओं का विकास आवश्यक है - शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास। पाठ्यक्रम के तहत, स्कूल के विषयों के शिक्षण में छात्रों के संज्ञानात्मक पहलू का अधिक विकास होता है। लेकिन भावनात्मक और कार्यात्मक पहलू विकसित करने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए इन पहलुओं के विकास के लिए पाठीय सहवर्ती क्रियाओं का उपयोग किया जाता है। आज स्कूलों में, हम इन गतिविधियों को शिक्षा प्रणाली के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में स्वीकार करते हैं। जब आज पाठ्यक्रम का विकसित अर्थ लिया जाता है, तो उचित विकास के लिए इन सहवर्ती गतिविधियों को पाठ्यक्रम में उचित स्थान देना आवश्यक है।

पाठ्यक्रम संबंधी कार्रवाई छात्रों को अच्छे नागरिक बनने के लिए प्रशिक्षित करती है। इस तरह की गतिविधियाँ छात्रों को स्कूल में व्यस्त रखती हैं। पाठ्यक्रम-उन्मुख गतिविधियों का शिक्षण में महत्वपूर्ण स्थान है और छात्रों के सर्वांगीण विकास में पूरी तरह से योगदान देता है। इन छात्रों के शामिल होने से उनके गुणों की क्षमता से परे विकास होता है। उनमें आत्मनिर्भरता है। वे किसी भी कार्य को पूरा करने में सक्षम हैं।

पाठ्यक्रम संबंधी गतिविधियों की उपयोगिता

छात्रों में नागरिक गुणों के विकास का अवसर प्रदान करती है।

छात्रों में नेतृत्व के गुणों का विकास किया जाता है।

छात्रों को नए प्रकार के हितों को विकसित करने के अवसर मिलते हैं।

पाठ-भागीदारी क्रियाओं के तहत छात्रों में समाजीकरण होता है।

इन गतिविधियों से बच्चों का सर्वांगीण विकास होता है।

सभी को अपनी प्रतिभा दिखाने के समान अवसर मिलते हैं।

किसी भी गतिविधि के दौरान, छात्रों के बीच सामाजिक संपर्क होता है, जो उन्हें आपस में बहुत कुछ सीखने का अवसर देता है।

छात्रों में आत्मविश्वास पैदा होता है।

उनमें पारस्परिक सहभागिता विकसित होती है।

उनमें सीखने की दिलचस्पी पैदा करता है।

समूह सीखने में सहायक होते हैं।


बाल विकास और शिक्षाशास्त्र : व्यक्तिगत और समाज के विकास में शिक्षा की भूमिका

बाल विकास और शिक्षाशास्त्र : व्यक्तिगत और समाज के विकास में शिक्षा की भूमिका

  1. कक्षा में स्नेह पूर्ण एवं सृजनशील शिक्षण ही सबसे बड़ी समाज सेवा है। आप इस कथन से -  पूर्ण रूप से सहमत हैं।
  2. भारतीय समाज में नैतिकता के ह्रास का प्रमुख कारण है -  अध्यापकों का अपना दायित्व नहीं निभाना।
  3. असामाजिक लोगों के साथ आपका व्यवहार किस प्रकार का होता है -  सुधारक के रूप में।
  4. किसी व्यक्ति का चरित्र सबसे ज्यादा प्रभावित होता है, इस संबंध में आप क्या मानते हैं -  पारिवारिक परिवेश से।
  5. जब कोई विद्यार्थी सामाजिक समारोहों में भाग लेने से कतराते है तो आप -  शिक्षक स्वयं सामाजिक समारोहों में भाग ले तथा छात्रों को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें।
  6. कुछ बच्चे अपने से बड़ों के प्रति आदर सूचक शब्दों का प्रयोग नहीं करते हैं तो आप -  उन्हें शिष्ट व्यवहार करने के लिए प्रेरित करेंगे।
  7. माता के रूप में आप बच्चों के प्रति क्या सोचती हैं -  उसमें सद्गुण विकसित करने के लिए उसे प्रेरित करेंगे।
  8. मानवीय मूल्यों में गिरावट आज के युग में कड़वा सच है। ऐसे में आप एक अध्यापक के रूप में किस प्रकार की सामाजिक भूमिका का निर्वहन करेंगे -  एक विशिष्ट व्यक्ति के रूप में आप मानव मूल्यों को अपने जीवन में स्थान देंगे।
  9. सम्मान प्राप्त करने के लिए दूसरों को सम्मान देना अति आवश्यक है। यह उक्ति लागू होती है -  स्कूलों सहित सभी स्थानों पर समान रूप से।
  10. वर्तमान में किस प्रकार की शिक्षा छात्रों तथा समाज के लिए लाभप्रद है -  रोजगार परक व्यवसायिक शिक्षा।
  11. अध्यापिका बनने के उपरांत किसी प्रतिष्ठित समाज में सम्मिलित होने पर -  आपको यह बताने में गर्व होगा कि आप एक अध्यापिका हैं।
  12. शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण लागू होने से निम्न में से क्या होता है -  सामाजिक रूप से पिछड़े व्यक्ति को सहायता मिलती है।
  13. एक विद्यार्थी के असामाजिक व्यवहार को सुधारने के लिए कौन सा कार्य नहीं करना चाहिए -   दूसरे विद्यार्थियों से कहना कि वह उसके साथ ना रहे।
  14. आपके विचार में केवल शिक्षक ही समाज और देश में जागृति ला सकता है क्योंकि -  वह छात्रों और समाज को दिशा देता है।
  15. विद्यालयों की स्थापना से समाज में -  आर्थिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है।
  16. नागरिकता के गुण सिखाने के लिए छात्रों को क्या करना चाहिए -  कुछ समय समुदाय में कार्य करना।
  17. आपने कक्षा के एक छात्र को डांटा। उस पर उसके पिताजी आप से लड़ने के लिए स्कूल आ गए, आपको चाहिए कि -  उन्हें समझाएं और उनसे पूरी बात करें।
  18. विद्यालय शिक्षा का उद्देश्य हर बच्चे में किस चारित्रिक विशेषता का विकास करना है -  स्वावलंबन।
  19. शिक्षक को समाज में अपना स्थान बनाने के लिए चाहिए -  अपने दायित्व को ठीक से निभाना।
  20. परिवार एक साधन है -  अनौपचारिक शिक्षा का।
  21. विद्यालयों में सामूहिक शिक्षण की व्यवस्था की जाती है, क्योंकि -  हर समाज में शिक्षकों की संख्या प्राया कम होती है।
  22. विद्यालयों की समाज के प्रति जिम्मेदारी बढ़ाने के लिए आवश्यक है -  शिक्षक अभिभावक संबंध बनाना।
  23. विद्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए क्योंकि -  इनसे छात्रों का सांस्कृतिक विकास होता है।
  24. हमारे जैसे बदलते समाज वाले देश में अध्यापक का योगदान तभी अर्थपूर्ण है जबकि वह -  सामाजिक उद्देश्यों के साथ-साथ व्यक्तिगत विकास में मदद करता है।
  25. विद्यालय समाज का सच्चा प्रहरी होता है। इस कथन का आशय यह है कि -  विद्यालय द्वारा समाज का विकास सुनिश्चित होता है।
  26. परिवार बालक की शिक्षा को किस प्रकार प्रभावित करता है -  समाज की संस्कृति के संस्कार डालकर।
  27. शिक्षण प्रक्रिया में सबसे अधिक किस की आवश्यकता है -  समाज।
  28. आजकल समाज के व्यक्तियों का ध्यान धन कमाने की ओर है, ऐसे समय में आप भी -  अपना ध्यान अपने काम की ओर जारी रखेंगे।
  29. विद्यार्थियों में सहयोग की भावना का विकास आप कैसे करेंगे -  समूह कार्य देकर।
  30. विद्यालयों में आयोजित की जाने वाली सामूहिक बाल सभाओं से -  छात्रों का विकास सुनिश्चित हो जाता है। 
  31. पाठ्य सहगामी क्रियाओं से छात्रों में विकसित होती है -  दूसरों के प्रति उत्तरदायित्व की भावना।
  32. निम्न में से कौन सा छात्र अधिक अच्छा नागरिक बन सकता है -  जो अन्य छात्रों की सहायता करता है।
  33. कोई विद्यार्थी अपनी व्यक्तिगत समस्या के बारे में चर्चा करने के लिए आपके पास आता है, एक शिक्षक के रूप में आप -  उसकी समस्या समझने की कोशिश कर, उसे सहायता करेंगे।
  34. उसी शिक्षक को समाज में वास्तविक मान सम्मान मिलना चाहिए जो -  अपने पद के दायित्वों का निर्वहन ईमानदारी और निष्ठा से करता है।

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