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अर्थशास्त्र एक परिचय

अर्थशास्त्र एक परिचय

Indian Economy : Introduction to Economics

अलफ्रेड मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र जीवन के सामान्य कारोबार के संदर्भ में मनुष्य के अध्ययन से संबंधित हैं।

 Indian Economy : अर्थशास्त्र से तात्पर्य

अर्थशास्त्र के अर्थ को समझने के लिए हमें प्रमुख रूप से पांच प्रमुख व महत्वपूर्ण तत्वों को समझना आवश्यक है। जो निम्नलिखित प्रकार से हैं -
  1. उपभोक्ता -जब आप अपनी आवश्यकताओं को संतुष्ट या पूरा करने के लिए वस्तुओं का क्रय करते हैं तब  आप उपभोक्ता कहलाते हैं।
  2. विक्रेता - जब आप वस्तुओं को स्वयं के लाभ के लिए विक्रय करते हैं तब आप विक्रेता कहलाते हैं।
  3. उत्पादक - जब आप वस्तुओं का उत्पादन किसान या बी निर्माता के रूप में करते हैं तब आप उत्पादक कहलाते हैं।
  4. सेवाधारी - जब आप कोई नौकरी अर्थात दूसरों के लिए कार्य करते हैं जिसके लिए आपको  पारश्रमिक दिया जाता है तब आप सेवा धारी कहलाते हैं।
  5. सेवा प्रदाता - जब आप भुगतान लेकर अन्य व्यक्तियों को सेवा प्रदान करते हैं तब आप सेवा प्रदाता कहलाते हैं।
इन सभी स्थितियों में आप किसी और आर्थिक क्रिया में लाभकारी रूप से नियोजित कहे जाएंगे। आर्थिक क्रियाएं  वह होती हैं जो धन प्राप्त करने के लिए की जाती हैं। यह पांच तत्व या घटक ही आर्थिक क्रियाओं का रूप हैं और जीवन के आम कारोबार से संबंधित हैं।

जीवन के आम कारोबार में संसाधनों  के सीमित होने के कारण व्यक्तियों को उन्हीं वस्तुओं को चुनना पड़ता है जो ज्यादा आवश्यक हो। अतः हम कह सकते हैं कि संसाधनों का अभाव ही आर्थिक समस्या है। इस समस्या का अध्ययन ही अर्थशास्त्र का मुख्य आधार है। क्योंकि अर्थशास्त्र विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाकलापों जैसे कि ऊपर पांच तत्वों का वर्णन किया गया है मैं संलग्न मनुष्य का अध्ययन है।

Indian Economy : अर्थशास्त्र अध्ययन का वर्गीकरण
Economics Classification of Studies

अर्थशास्त्र के अध्ययन को  प्रायः तीन भागों में बांटा जाता है  उपभोग, उत्पादन एवं वितरण।
  1. उपभोग - उपभोक्ता यह निर्णय कैसे करता है कि वह अपनी निश्चित आय और ज्ञात कीमतों को देखते हुए अनेक वैकल्पिक वस्तुओं में से किन वस्तुओं को  खरीदे।  चयन ही वास्तव में उपभोग का अध्ययन विषय है।
  2. उत्पादन - कोई उत्पादक जिसे अपनी लागत और कीमतें ज्ञात हैं इसका चयन कैसे करते हैं बाजार के लिए क्या उत्पादन करें। यह उत्पादन का अध्ययन है।
  3. वितरण - अंत में हम यह जानना चाहते हैं कि राष्ट्रीय आय या कुल आय जो देश में उत्पादन से प्राप्त होती है जिसे सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं, मजदूरी एवं वेतन, लाभ तथा ब्याज अंतरराष्ट्रीय व्यापार एवं निवेश से प्राप्त आय को छोड़कर)  को कैसे वितरित किया जाता है। यह वितरण का अध्ययन है।

Indian Economy : भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक
Sectors of Indian Economy

आप लोगों को विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में कार्यरत पाएंगे। इनमें से कुछ गतिविधियां वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। कुछ अन्य सेवाओं का सृजन करती हैं। इन्हें समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण मानदंडों के आधार पर इन्हें विभिन्न समूहों में वर्गीकृत कर दिया जाए। इन समूहों को  क्षेत्रक भी कहते हैं। उद्देश्य और किसी महत्वपूर्ण मानदंड के आधार पर इन्हें अनेक तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है। यह क्षेत्र तीन प्रकार के हैं -
  1. प्राथमिक क्षेत्रक - जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं, तो इसे प्राथमिक क्षेत्र की गतिविधि कहा जाता है। क्योंकि यह उन सभी उत्पादों का आधार है जिन्हें हम क्रम से निर्मित करते हैं। इसलिए इस क्षेत्र को कृषि एवं सहायक क्षेत्र भी कहा जाता है। इसमें कृषक वर्ग आते हैं।
  2. द्वितीय क्षेत्रक - इसके अंतर्गत प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली के जरिए अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। यह प्राथमिक क्षेत्र के बाद अगला कदम है। यहां वस्तुएं प्राकृतिक रूप से उत्पादित ना होकर निर्मित की जाती हैं। यह प्रक्रिया कारखाना कार्यशाला या घर में हो सकती है। यह उद्योगों से जुड़ा हुआ है इसलिए इसे औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता है।
  3. तृतीयक क्षेत्रक - तृतीय क्षेत्र की गतिविधियां प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्र के विकास में मदद करती हैं। यह गतिविधियां स्वता वस्तुओं का उत्पादन नहीं करती हैं बल्कि उत्पादन प्रक्रिया में सहयोग या मदद करती हैं। परिवहन भंडारण संचार बैंक सेवाएं और व्यापार तृतीय गतिविधियों के कुछ उदाहरण हैं। क्योंकि यह सेवाओं का सृजन करती हैं इसलिए तृतीय क्षेत्र को सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है।

Indian Economy : सकल घरेलू उत्पाद गणना में क्षेत्रों का महत्व
Importance of Sectors in GDP Calculation

Indian Economy : उपरोक्त तीनों क्षेत्रको  के विविध उत्पादन कार्यों से काफी अधिक मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। साथ ही काफी लोग वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए काम करते हैं। इसलिए हमें यह जानना अति आवश्यक हो जाता है कि प्रत्येक क्षेत्र में कितनी वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन होता है और कितने लोग उस क्षेत्र में काम करते हैं।

वास्तविक रूप में वस्तुओं व सेवाओं की कुल मात्रा की गणना करना असंभव कार्य है। इस  समस्या समाधान के लिए अर्थशास्त्रियों का सुझाव है कि वस्तुओं और सेवाओं की वास्तविक संख्याओं का योग करने के स्थान पर उनके मूल्य का उपयोग किया जाना चाहिए।

इस प्रकार 3 क्षेत्रों  के वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य की गणना की जाती है और उसके बाद योग फल प्राप्त करते हैं। इसमें यह सावधानी रखनी आवश्यक है कि उत्पादित और बेची गई प्रत्येक वस्तु या सेवा की गणना करने की जरूरत नहीं है। केवल अंतिम वस्तुओं और सेवाओं की गणना का ही औचित्य है।

जैसे गेहूं के आटे से बिस्कुट बनता है तो यहां पर बिस्कुट क्या है अंतिम उत्पाद है। यहां अंतिम उत्पाद का ही गणना इसलिए की जाती है क्योंकि गेहूं और आटा जैसी वस्तुएं मध्यवर्ती वस्तु में हैं और इनका प्रयोग अंतिम वस्तुओं व सेवाओं के निर्माण में किया जाता है। अंतिम वस्तु व सेवा में मध्यवर्ती वस्तु का मूल्य पहले से ही शामिल होता है।

इस प्रकार किसी विशेष वर्ष में प्रत्येक क्षेत्र द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य उस वर्ष में क्षेत्र के कुल उत्पादन की जानकारी प्रदान करता है।

Indian Economy : तीनों क्षेत्रों के उत्पादन के योगफल को देश का सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं। यह किसी देश के भीतर किसी विशेष वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य है। सकल घरेलू उत्पाद अर्थव्यवस्था की विशालता प्रदर्शित करता है।

भारत में सकल घरेलू उत्पाद मापन जैसा कठिन कार्य केंद्र सरकार के मंत्रालय द्वारा किया जाता है। यह मंत्रालय राज्यों एवं केंद्र शासित क्षेत्रों के विभिन्न सरकारी विभागों की सहायता से वस्तुओं और सेवाओं की कुल संख्या और उनके मूल्य से संबंधित सूचनाएं एकत्र करता है और तब सकल घरेलू उत्पाद का अनुमान करता है।

Indian Economy : क्षेत्रों में ऐतिहासिक परिवर्तन
  • विकास की प्रारंभिक अवस्था में प्राथमिक क्षेत्र ही आर्थिक सक्रियता का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है।
  • कुल उत्पादन एवं रोजगार की दृष्टि से द्वितीय क्षेत्र सबसे महत्वपूर्ण हो गया है।
  • कुल उत्पादन की दृष्टि से सेवा क्षेत्र का महत्व बढ़ गया है।


अतः निष्कर्ष स्वरूप अथवा उपरोक्त वर्णन के आधार पर हम कह सकते हैं कि व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तथा समाज के विभिन्न व्यक्तियों एवं समूहों में  उपभोग हेतु वितरित करने के लिए इस का चुनाव कैसे करें कि वैकल्पिक प्रयोग वाले अल्प  संसाधनों का प्रयोग विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में हो सके, अर्थशास्त्र किसका अध्ययन है।

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