बालक के विकास के सिद्धांत
बच्चों के विकास के सिद्धांत को समझने से पहले हम एक बार पुनः बाल विकास की अवधारणा को सारांश में समझने का प्रयास करेंगे। इसमें दो शब्दों को पहले हम समझेंगे जो इस प्रकार हैं।
बालक- गर्भावस्था से लेकर किशोरावस्था तक के मानव को यानी जिसकी उम्र लगभग 12 वर्ष तक हो उसे बाल मनोविज्ञान में बालक कहा गया है।
विकास- गर्भावस्था से किशोरावस्था तक रचनात्मक परिवर्तन से लेकर हराश अवस्था तक विकास की उत्पत्ति वृद्धि तथा अपकर्ष में आने वाले क्रमिक परिवर्तन का योग है विकास।
बच्चों के विकास के सिद्धांत के पांच प्रमुख आधार स्तंभ है-
- फिजिकल
- कॉग्निटिव
- लैंग्वेज
- सोशल
- इमोशन
इसके साथ ही बाल विकास में आयु प्रवृत्ति संबंधी अध्ययन विशेष रुप से चिंतन, समस्या, समाधान, सृजनात्मकता, नैतिक तर्क एवं व्यवहार, अभिवृत्ति आदि क्षेत्रों में किए जाते हैं।
यहां पर बच्चों के विकास का सिद्धांत प्रत्येक अवस्था के लिए अलग-अलग होता है। गर्भावस्था से लेकर शैशवावस्था के मध्यकाल तक केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा में पेपर 1 कक्षा 1 से 5 के लिए आधारभूत प्रश्न पूछे जाते हैं।
शैशवावस्था के मध्य काल से लेकर किशोरावस्था के अंत तक केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा में पेपर 2 के कक्षा 1 से 8 के लिए आधारभूत प्रश्न पूछे जाते हैं।
बच्चों के विकास के सिद्धांत में कुछ नए पक्ष परिपक्वता के साथ-साथ जुड़ते चले जाते हैं। यह निम्नांकित प्रकार से हैं।
- शारीरिक विकास
- गत्यात्मक विकास
- मानसिक विकास
- सामाजिक विकास
- भाषा विकास
- संवेगात्मक विकास
- चारित्रिक विकास
- स्मृति विकास
- नैतिक विकास
- प्रतिमा तथा कल्पना का विकास
- धार्मिक विकास
- ध्यान एवं रुचि का विकास
- प्रत्यक्षीकरण का विकास
- चिंतन का विकास
- तर्क का विकास
- निर्णय का विकास
- सौंदर्य आत्मक विकास
- खेल का विकास
- व्यक्तित्व का विकास
विकास के निर्धारक तत्व
विकास क्यों होता है? यह एक स्वाभाविक प्रश्न है। आईए इसको समझते हैं। विकास को निर्धारित करने के लिए दो कारण प्रमुख हैं।
- परिपक्वता।
- सीखना।
परिपक्वता
परिपक्वता एक जीव शास्त्री शब्द है यानी कि बायोलॉजिकल वर्ड है। मनुष्य को अनुवांशिक रूप से जो शील गुण प्राप्त होते हैं वह विकास की प्रक्रिया को अधिक परिपक्व बनाते हैं। अर्थात परिपक्वता एक वंशानुक्रम प्रक्रिया है। इसमें शारीरिक व मानसिक विकास का क्रमिक रूप शामिल होता है। यह एक गुणात्मक परिवर्तन होता है।
सीखना
वातावरण के संपर्क में आकर जो अनुभव एवं अभ्यास प्राप्त करते हैं जिसके कारण वंशानुक्रम में व्यवहारिक परिवर्तन होता है सीखना कहलाता है। सीखना एक वातावरणीय प्रक्रिया है। सीखने का अर्थ व्यवहार में स्थाई प्रगति पूर्ण स्थानांतरण का होना है।
एक प्रमुख बात- सीखने की प्रक्रिया परिपक्वता पर आधारित है परंतु परिपक्वता सीखने पर आधारित नहीं होता है।
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें
Please do not comment any spam link in comment box.