बाल विकास की अवधारणा
केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा 2021 जो कि दिसंबर में आयोजित होने वाली है उसके पाठ्यक्रम के अनुसार आज हम आपके सामने लेकर आए हैं पहला टॉपिक जिसमें हम बात करेंगे बाल विकास अवधारणा के बारे में और उसका सीखने के साथ क्या संबंध है।
सबसे पहले हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि आखिर हमको पढ़ना क्या है। अगर हमें यही नहीं पता है कि बाल विकास अवधारणा के अंतर्गत कौन-कौन से शीर्षक आते हैं तो हम प्रश्नों का उत्तर एग्जाम में देने में असमर्थ हो जाएंगे। तो आइए सबसे पहले जानते हैं कि हमको पढ़ना क्या है-
- अभिवृद्धि और विकास के सिद्धांत।
- विकास की अवस्थाएं जैसे शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था।
- बालक का विकास- इसमें हम पढ़ेंगे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक और चारित्रिक विकास।
- चरित्र निर्माण में परिवार, विद्यालय तथा समाज का योगदान।
- बालक के विकास में घर परिवार, विद्यालय तथा समाज का योगदान।
अब सबसे पहले हम कुछ अवधारणाओं को समझने का प्रयास करेंगे जो कि बाल विकास की अवधारणा से संबंधित शब्दावली है।
बाल मनोविज्ञान क्या है?
बालक के विकास का गर्भावस्था से लेकर किशोरावस्था तक का अध्ययन ही बाल मनोविज्ञान कहलाता है।
बाल मनोविज्ञान में क्या अध्ययन करते हैं?
बाल मनोविज्ञान में गर्भावस्था से किशोरावस्था तक के व्यक्ति के मानसिक,शारीरिक क्रियाओं, अनुभव, व्यवहार, व्यक्तित्व, संवेग, सामाजिक, चारित्रिक, नैतिक विकास का अध्ययन किया जाता है।
बाल मनोविज्ञान का अध्ययन शिक्षक के लिए क्यों जरूरी है?
बाल मनोविज्ञान का अध्ययन 1 प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के लिए अनिवार्य है ताकि उसके अंदर शिक्षक बनने की योग्यता आ सके और अध्ययन अध्यापन कार्य में कम से कम त्रुटियां हूं।
बालक का क्या अर्थ है?
गर्भावस्था से किशोरावस्था तक अर्थात 12 वर्ष की आयु प्राप्त व्यक्ति या मानव को बालक की श्रेणी में रखते हैं।
बाल मनोविज्ञान में विकास का क्या अर्थ है?
बाल मनोविज्ञान में विकास का तात्पर्य गर्भाधान से शुरू होकर किशोरावस्था तक की प्रक्रिया में आए शारीरिक और मानसिक क्षमताओं में परिवर्तन होना है। यह परिवर्तन क्रमिक होते हैं।
बाल विकास में परिवर्तन के प्रकार?
बाल विकास में परिवर्तन को दो प्रकार में बांटा गया है। पहला है प्रारंभिक अवस्था के परिवर्तन। यह परिवर्तन रचनात्मक अर्थात कंस्ट्रक्टिव होते हैं। क्योंकि यह समय बालक की वृद्धि या ग्रोथ का समय होता है।
दूसरी अवस्था के परिवर्तन में बालक के विकास के समय हराश के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। अर्थात पुराने लक्षणों की जगह नए लक्षण ले लेते हैं। बाल विकास की परिवर्तन की टीम श्रेणियां होती हैं जो कि एक क्रम में होती हैं। यह इस प्रकार हैं- विकास में उत्पत्ति- वृद्धि- अपकर्ष।
बाल विकास का विज्ञान
बाल विकास का विज्ञान दो प्रकार का होता है-
विधायक विज्ञान- विधायक विज्ञान में बालक के विकास के लिए बालक को तथ्यों का अध्ययन कराया जाता है। अर्थात “क्या है?” का अध्ययन कराया जाता है।
नियामक विज्ञान- नियामक विज्ञान के अंतर्गत बालक के विकास के लिए उसे यह बताया जाता है कि कोई विचार वस्तु या कार्य कैसा होना चाहिए अर्थात “क्या होना चाहिए?”।
बाल विकास का सीखने के साथ संबंध
बालक के विकास को सीखने के साथ संबंध का तात्पर्य शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम, अनुशासन, शिक्षक एवं विद्यालय को निर्धारित एवं व्यवस्थित करने में प्रयोग होता है।
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