वाइगोत्सकी के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत

वाइगोत्सकी के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत

Child Development And Pedagogy : Vygotsky's Theory of Cognitive Development

Child Development And Pedagogy : वाइगोत्सकी के सिद्धांत के अनुसार बच्चों के संज्ञानात्मक विकास में सामाजिक कारको एवं भाषा का स्थान महत्वपूर्ण है। इसलिए इनके सिद्धांत को सामाजिक सांस्कृतिक सिद्धांत भी कहा जाता है। 

वास्तव में बालक का संज्ञानात्मक विकास समाज की अंतर वैयक्तिक सामाजिक परिस्थितियों में संपन्न होता है। बालक ऐसे कार्य जो स्वयं से नहीं कर पाता है उसे वह सार्थक एवं महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सहायता से करने में सक्षम होता है। बालक की प्रतिक्रिया व अन्य व्यक्तियों के कार्य की प्रतिक्रिया के बीच के अंतर को ही वाइगोत्सकी ने समीपस्थ विकास का क्षेत्र माना है। 

इसका मतलब यह है कि बालक जो कार्य स्वयं से पूर्ण रूप से करने में असमर्थ है उसी कार्य को  वह अन्य सामाजिक व्यक्तियों के सहयोग से पूर्ण कर लेता है इसे ही समीपस्थ विकास का क्षेत्र कहा जाता है। 

वाइगोत्सकी ने बच्चों की भाषा और चिंतन को भी महत्वपूर्ण माना है। जिसका उपयोग बालक अपने व्यवहार को नियोजित एवं निर्देशित करने के लिए करता है और साथ ही सामाजिक संचार में भी प्रयोग करता है बालक द्वारा जब भाषा का उपयोग आत्म नियमन  के लिए किया जाता है - इसे ही आंतरिक भाषण या निजी भाषण कहा जाता है। 

Child Development And Pedagogy : समीपस्थ/ निकट विकास क्षेत्र में खेल का महत्व

वाइगोत्सकी का मत था कि बालकों के लिए खेल अपने व्यवहार पर नियंत्रण की क्षमता विकसित करने वाला मानसिक उपकरण है। खेल की कल्पित स्थितियां बालकों के व्यवहार को विशेष रूप से नियंत्रित करने वाली व दिशा देने वाली प्रथम बाधाएं हैं। खेल  व्यवहार को संगठित करता है। खेल संज्ञानात्मक,भावात्मक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देता है। इससे स्कूल संबंधी कौशलों को भी लाभ होता है। खेल के दौरान बालकों के मानसिक कौशल उच्च स्तर पर होते हैं। 

वाइगोत्सकी ने खेल को निकट समीपस्थ विकास क्षेत्र के उच्चतर स्तर की तरह माना है। इनके अनुसार खेल विकास को तीन प्रकार से प्रभावित करता है -

  1. कार्यों व वस्तु विचारों में अंतर सिखाता है। 
  2. खेल से आत्म नियंत्रण का विकास होता है।  
  3. खेल से निकट विकास क्षेत्र का निर्माण होता है। 

अन्य महत्वपूर्ण बातें
इनके अनुसार अधिगम तथा अन्य गतिविधियों की तुलना में खेल में नई विकास  मान क्षमताएं प्रकट होती हैं। 
खेल में विकास की सारी  प्रवृत्तियां मौजूद रहती हैं और बालक सदैव आगे की ओर बढ़ने को तत्पर रहता है। 
बालक खेल द्वारा जिस मानसिक प्रक्रिया में तत्पर रहता है - उससे निकट विकास क्षेत्र का निर्माण होता है। इसके लिए  कल्पित स्थितियां - परिस्थितियां बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होती हैं ताकि बालक का उचित विकास हो सके।  


Child Development And Pedagogy : विकास की अवस्थाएं 
Stages of Human Development

हिंदू धर्म शास्त्रों में जीवन अवधि पर आधारित मानव विकास की अवस्थाएं निम्न प्रकार हैं
  1. जन्म से पूर्व- गर्भावस्था
  2. जन्म से 6 वर्ष तक- शैशवावस्था
  3. 6 से 12 वर्ष तक- बाल्यावस्था
  4. 12 से 18 वर्ष तक- कौमार्य अवस्था
रास ने मानव विकास के क्रम को चार भागों में बांटा है
  1. 1 से 3 वर्ष तक- शैशव काल
  2. 3 से 6 वर्ष तक- पूर्व  बाल्यकाल
  3. 6 से 12 वर्ष तक- उत्तर  बाल्यकाल
  4. 12 से 18 वर्ष तक- किशोरावस्था
जोंस ने मानव विकास की अवस्थाओं को तीन भागों में बांटा है
जन्म से 5 वर्ष तक- शैशव
5 से 12 वर्ष तक-  बाल्यकाल
12 से 18 वर्ष तक- किशोरावस्था
हर  लॉक में मानव विकास की अवस्थाओं को सात भागों में बांटा है
  1. जन्म से पूर्व- गर्भावस्था
  2. जन्म से 14 दिन तक- प्रारंभिक  शैशवावस्था
  3. 14 दिन से 2 वर्ष तक- उत्तर  शैशवावस्था
  4. 2 वर्ष से 11 वर्ष तक- बाल्यावस्था
  5. 11 से 13 वर्ष तक- पूर्व किशोरावस्था
  6. 13 वर्ष से 17 वर्ष तक- प्रारंभिक किशोरावस्था
  7. 17 वर्ष से 21 वर्ष तक- उत्तर किशोरावस्था
कोल ने विकास की  12 अवस्थाएं बताई हैं
  1. जन्म से 2 वर्ष तक- शैशवावस्था
  2. 2 से 5 वर्ष तक- प्रारंभिक बाल्यावस्था
  3. 6 से 10 वर्ष या 6 से 12 वर्ष तक- मध्य बाल्यावस्था
  4. 11 से 12 वर्ष तक या 13 से 14 वर्ष  तक- पूर्व किशोरावस्था या उत्तर बाल्यावस्था
  5. 12 से 14 वर्ष तक या 15 से 16 वर्ष तक- प्रारंभिक किशोरावस्था
  6. 15 से 17 वर्ष तक या 17 से 18 वर्ष तक- मध्य किशोरावस्था
  7. 18 से 20 वर्ष तक या 19 से 20 वर्ष तक- उत्तर किशोरावस्था
  8. 21 से 34 वर्ष तक- प्रारंभिक प्रौढ़ावस्था
  9. 35 से 49 वर्ष तक- मध्य  प्रौढ़ावस्था
  10. 50 से 64 वर्ष तक- उत्तर  प्रौढ़ावस्था
  11. 65 से 74 वर्ष तक- प्रारंभिक वृद्धावस्था
  12. 75 वर्ष से आगे तक- वृद्धावस्था

Child Development And Pedagogy : बाल केंद्रित शिक्षा में बाल विकास की अवस्थाएं

शैशवावस्था- जन्म से 3 साल- इसकी मुख्य बातें निम्नलिखित हैं
  • प्रधानता शारीरिक विकास तथा   उप मानसिक भावनात्मक विकास
  • शिशु भाव विचार बोलना सीखता है
  • सरल वाक्यों का प्रयोग करता है
  • इसी काल में शिशु की मूर्तियों का उचित मार्ग निर्देशन हो सकता है |
  • इस आयु में माता-पिता के संरक्षण में रहता है

Child Development And Pedagogy : बाल्यावस्था- 3 से 11 या 12 वर्ष तक- इसकी मुख्य बातें निम्न है
  • इस काल में प्रारंभिक प्रगति तीव्र बाद में मंद हो जाती है
  • इसमें पूर्व अर्जित कौशल् ज्ञान   पचता परिपक्व तथा पुष्ट होता है
  • इसे दो भागों में बांटते हैं पहला 4 से 7 वर्ष दूसरा आठ से 11 या 12 वर्ष
  • शैशवावस्था में प्राप्त शक्तियां पुष्ट होती हैं
  • जिज्ञासा का विकास होता है
  • वस्तुओं के विषय में क्या कैसे कौन क्यों के प्रश्न  मन में उठते हैं
  • इस अवस्था में अनुकरण बालक के आत्म शिक्षण  की मुख्य विधि बन जाता है
  • बाल्यावस्था के उत्तरार्ध में बालक प्राथमिक शाला में जाने लगता है
  • बालक में सामाजिक भावना का विकास होता है

Child Development And Pedagogy : किशोरावस्था- 12 से 20 वर्ष तक- इसकी मुख्य बातें निम्न है
  • यह विकास की  तीव्रतम गति का समय है इसमें शारीरिक परिवर्तन होते हैं
  • यह बाल्यावस्था व   प्रौढ़ावस्था के बीच का संक्रमण काल है
  • इसे तूफान संकट या क्रांति का काल भी कहते हैं
  • इसे अनोखा काल भी कहते हैं
  • बालक माध्यमिक शाला में जाने लगता है
  • शिक्षक को शिक्षण कार्य के लिए बालक की आवश्यकताओं का ज्ञान हो जाता है
  • बालक की कक्षा में विभिन्न असमान विभिन्न व बेमेल शिक्षार्थी होते हैं
  • कुसमायोजन की प्रवृत्ति होती है
  • इस अवस्था में पढ़ने लिखने में नेत्रों पर जोर नहीं देना चाहिए
  • इस अवस्था में शिक्षक को शिक्षण की दृश्य सामग्री कम करके बालक की कल्पना का उन्नयन करना चाहिए
  • गणित विज्ञान भूगोल आदि में व्यवस्थित तर्क करना तथा स्वतंत्र रूप से निष्कर्ष प्राप्त करना इसी अवस्था में सिखाना चाहिए
  • किशोरावस्था कल्पना का प्रसव काल है
  • इस अवस्था में काम भावना श्रम साध्य खेलो ललित कलाओं सहकारिता आत्म गौरव विनम्रता आत्मज्ञान सदाचार धर्म में आस्था जीवन आदर्श जैसी भावनाओं व क्रियाओं का विकास होता है

Child Development And Pedagogy : तरुण अवस्था- 18 से 20 या 30 32 वर्ष तक- इसकी मुख्य बातें निम्न है
  • प्रायः बालक शाला से निकल जाता है
  • इस अवस्था में शिक्षक को साला समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता
  • कुछ कौशल व प्रवीणता का आना शारीरिक विकास की प्रवणता पर निर्भर करता है 

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