बालक के भाषा विकास के क्रम

बाल विकास में भाषा और सोच

Language and Thinking in Child Development

Child Development And Pedagogy :भाषा

Child Development And Pedagogy : बोलने की शक्ति ही भाषा है भाषा विचारों भावनाओं बौद्धिक क्षमताओं की अभिव्यक्ति संपर्क स्थापित करना तथा संस्कृति व सभ्यता का आदान-प्रदान है।

बालक के जीवन में भाषा का महत्व

  • आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की संतुष्टि का प्रकटीकरण करना।
  • अन्य व्यक्तियों का ध्यान आकर्षित कर पाना।
  • सामाजिक संबंध विकसित करना।
  • सामाजिक मूल्यांकन में सहायक होना।
  • स्व मूल्यांकन या किसी पर टिप्पणी प्राप्त करना।
  • शैक्षणिक उपलब्धि हासिल करना।
  • दूसरों की भावनाओं एवं विचारों पर प्रभाव डालना।
  • दूसरे के व्यवहार पर प्रभाव डालना।

बालक के भाषा विकास के क्रम

  • रोना।
  • कूकना तथा   बबलाना ।
  • हाव भाव अथवा   अंग विच्छेद।
  • संवेगात्मक अभिव्यक्ति।

Child Development And Pedagogy : बोलना सीखने के प्रमुख कार्य लक्षण

इसमें दो  तत्व का समावेश किया गया है - पहला है मुख्य तत्व दूसरा है  दोषपूर्ण तत्व।
मुख्य तत्व
  • शब्दों का उच्चारण करना सीखना।
  • शब्दावली या शब्दकोश का निर्माण करना। सामान्य या विशिष्ट
  • वाक्य निर्माण करना।
भाषा के दोषपूर्ण तत्व
  • शब्दों के अर्थ में दोष।
  • उच्चारण में  दोष। भाषा में  और  असमानताएं होना उच्चारण दोष का प्रमुख कारण है  यह निम्न प्रकार हैं
  • प्रशिक्षण का  अभाव।
  • ठीक सुनाई ना देना या बहरापन।
  • उत्तेजना स्वरूप जल्दी बोलना।
  • प्रारंभ से ही गलत बोलना।
  • अंतः स्रावी ग्रंथियों का  असंतुलन।
  • वाक्य संरचना में दोष।

भाषा व्याधियों के प्रकार

भाषा व्याधियों के प्रकार चार प्रकार के हैं जो निम्न है -
  • अस्पष्ट बोलना।
  • ध्वनि परिवर्तन।
  • अक्षर लोप ।
  • हकलाना।

Child Development And Pedagogy : भाषा विकास के सिद्धांत

Child Development And Pedagogy : भाषा विकास के दो मुख्य सिद्धांत हैं जिनका नीचे वर्णन किया जा रहा है।
  1. सामाजिक शिक्षण का सिद्धांत -सामाजिक शिक्षण का सिद्धांत के  ए बंडूरा ने दिया था। इस सिद्धांत के अनुसार बालक के समक्ष प्रस्तुत प्रति मानो या नमूनों के अनुकरण एवं अवलोकन के आधार पर उसका भाषा विकास होता है
  2. भाषा अर्जित करने की विधि का सिद्धांत - भाषा अर्जित करने की विधि का सिद्धांत  एन कोमासकी ने दिया था। इसे  लेड सिद्धांत भी कहते हैं। इसके अनुसार बालक के अंदर एक भाषा प्रणाली बनी होती है जो कुछ भी वह सुनता है इसी प्रणाली द्वारा ग्रहण करता है उसके बाद  दोहरा  के भाषा का विकास करता है।

भाषा को प्रभावित करने वाले तत्व

Child Development And Pedagogy :भाषा को प्रभावित करने वाले तत्व निम्न प्रकार हैं जिनमें स्वास्थ्य शारीरिक रचना बुद्धि सामाजिक-आर्थिक स्तर लिंग बातचीत की इच्छा उत्तेजना परिवार का आकार जन्म  क्रम बालक को प्रशिक्षण देने की विधि एक से अधिक शिक्षकों का जन्म समान आयु के बालकों से संपर्क व्यक्तित्व का समायोजन और संवेगात्मक तनाव आदि शामिल हैं।

भाषा सीखने के साधन

बालक भाषा सीखना अनुकरण खेल कहानी सुनना वार्तालाप प्रश्नोत्तर आदि के माध्यम से सीख लेता है।

Child Development And Pedagogy : चिंतन

Child Development And Pedagogy : मनुष्य को संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा गया है। इसका कारण है उसका चिंतनशील होना। बालक द्वारा समस्या का समाधान करने के उपाय सोचना ही चिंतन है। चिंतन मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पक्ष है। इच्छा तथा असंतोष मनुष्य को चिंतन करने के लिए उत्तरदाई है।

चिंतन की विशेषताएं

  • विशिष्ट गुण।
  • मानसिक प्रक्रिया।
  • भावी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु व्यवहार।
  • समस्या समाधान।
  • अनेक विकल्प।
  • समस्या समाधान तक चलने वाली प्रक्रिया।

चिंतन के प्रकार

चिंतन  चार प्रकार का होता है जिसका वर्णन नीचे किया जा रहा है।
  1. प्रत्यक्ष आत्मक चिंतन - इसका संबंध पूर्व अनुभवों पर आधारित वर्तमान की वस्तुओं से होता है। यह निम्न स्तर का चिंतन है। इसे पशु हुआ बालकों में पाया जाता है। इसमें भाषा और नाम का प्रयोग नहीं किया जाता है।
  2. प्रत्यय आत्मक चिंतन - इसका संबंध पूर्व निर्मित  प्रत्यय  से होता है  प्रत्यय  का मतलब पूर्व धारणा या पहचान है।
  3. कल्पनात्मक चिंतन - इसका संबंध पूर्व अनुभव पर आधारित भविष्य से होता है। इसमें भी भाषा व नाम का प्रयोग नहीं होता है।
  4. तार्किक चिंतन - यह सबसे उच्च प्रकार का चिंतन है। इसका संबंध किसी समस्या के समाधान से होता है। जॉन डीवी ने इसको विचारात्मक चिंतन की संज्ञा दी है।

चिंतन के सोपान

चिंतन के चार सोपान निम्नलिखित हैं -
  1. समस्या का आकलन करना।
  2. उससे संबंधित तथ्यों का संकलन करना।
  3. निष्कर्ष पर पहुंचना।
  4. निष्कर्ष का परीक्षण करना। इससे वैधता तथा  विश्वसनीयता की परीक्षा हो जाती है।

बालक में चिंतन के विकास के उपाय

Child Development And Pedagogy : बालक में चिंतन के विकास के उपायों को हम लोग निम्नांकित बिंदुओं से समझ सकते हैं जो इस प्रकार हैं -
  • उचित चिंतन के लिए शिक्षक को बालकों के भाषा ज्ञान में वृद्धि करनी चाहिए।
  • बालकों को ज्ञान में वृद्धि करनी चाहिए।
  • शिक्षक द्वारा बालकों को तर्क वाद-विवाद समस्या समाधान और चिंतन शक्ति के प्रयोग का अवसर देना चाहिए।
  • शिक्षक द्वारा बालक को उत्तरदायित्व के कार्य सौंपने चाहिए।
  • रुचि व जिज्ञासा की प्रगति को बनाए रखना चाहिए।
  • शिक्षक द्वारा बालकों के लिए प्रयोग अनुभव निरीक्षण से संबंधित वस्तुएं जुटाने चाहिए।
  • बालकों से अध्यापन के समय विचारात्मक प्रश्न पूछने चाहिए।
  • बालकों को अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • प्रश्न पत्र में विचारात्मक  उत्तरों वाले प्रश्न पूछने चाहिए।
  • रटने की प्रवृत्ति से बालक को दूर रखें  यह चिंतन का घोर शत्रु है।
  • बालकों को समस्याओं को समझने व उसका समाधान खोजने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

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