लार्ड मैकाले आज्ञा पत्र 1813

लार्ड मैकाले आज्ञा पत्र 1813

प्राचीन साहित्य की आलोचना के बाद लॉर्ड मैकाले ने सन 1813 में पत्र की विवेचना अपने ढंग से की इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्न प्रकार थी -

'साहित्य' शब्द जो इस आज्ञा पत्र में प्रयुक्त किया गया था, इसका अर्थ प्राचीन साहित्य से नहीं बल्कि अंग्रेजी साहित्य से था।
मैकाले ने विद्वान शब्द की व्याख्या उन भारतीय विद्वानों के लिए कि जिन्हें 'जॉन लॉक' के दर्शन तथा 'मिल्टन' की कविताओं का ज्ञान था।
मैकाले के अनुसार अंग्रेजी विश्व की सर्वोत्तम भाषा है। भारत में इसकी शिक्षा दी जानी चाहिए क्योंकि शासक तथा उच्च वर्ग इस का ही प्रयोग करते थे।
अंग्रेजी भाषा द्वारा ज्ञान के विशाल भंडार को प्राप्त किया जा सकता था ऐसा मैकाले का मानना था।
अंग्रेजी ही नवजागरण का एकमात्र साधन था।
विश्व के उन्नतशील राष्ट्र अंग्रेजी बोलते हैं।
जिस प्रकार लैटिन भाषा के कारण इंग्लैंड में नवजागरण आया उसी प्रकार अंग्रेजी के माध्यम से भारत भी विकसित हो सकता है।
मैकाले के इन विचारों को तत्कालीन गवर्नर जनरल द्वारा स्वीकार कर लिया गया और पाश्चात्य शिक्षा की प्रगति के लिए समुचित शिक्षा नीति घोषित कर दी गई।

वुड का घोषणा पत्र 1854

वुड का घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें निम्न प्रकार से हैं -

ब्रिटिश संसद ने एक संसदीय प्रवर समिति की नियुक्ति की जिसके अध्यक्ष  वुड ने 19 जुलाई 1854 को अपनी शिक्षा नीति घोषित की।
भारतीय क्षेत्र में शिक्षा का प्रचार प्रसार करना कंपनी का उत्तरदायित्व है। इस प्रकार शिक्षा का दायित्व कंपनी के कंधों पर डाल दिया गया।
घोषणा पत्र  प्राची साहित्य को अच्छा मानता है किंतु शिक्षा का अंतिम उद्देश्य यूरोपीय साहित्य, विज्ञान, कला, दर्शन तथा धर्म का ज्ञान प्रदान करना है।
शिक्षा का माध्यम यूरोपीय भाषा अंग्रेजी होनी चाहिए क्योंकि यूरोपीय ज्ञान का विशाल ज्ञान भंडार केवल अंग्रेजी के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है।
प्रत्येक प्रांत में जन शिक्षा विभाग स्थापित किए जाएं।
हायर सेकेंडरी स्तर पर भारतीय भाषाओं का अध्ययन कराया जाना चाहिए।
'निस्पंदन सिद्धांत' के विरुद्ध घोषणा पत्र में जनसाधारण की शिक्षा के लिए अधिक से अधिक मात्रा में शिक्षा सुविधाएं उपलब्ध कराने की बात कही गई थी।
स्त्री शिक्षा के विकास के लिए उदारता पूर्वक बालिका विद्यालयों को अनुदान देने की घोषणा की गई।
व्यवसायिक शिक्षा की प्रगति के लिए चिकित्सा कानून तथा इंजीनियरिंग की शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए।

हंटर कमीशन 1882

हंटर आयोग ने अपनी सिफारिशें और सुझाव शिक्षा के नियम क्षेत्रों में दिए  थे -

प्राथमिक शिक्षा
माध्यमिक शिक्षा
उच्च शिक्षा
सहायता अनुदान प्रणाली
स्त्री शिक्षा
मुस्लिम शिक्षा
हरिजनों और पिछड़े वर्ग की शिक्षा
आदिवासियों और पर्वतीय जातियों की शिक्षा
धार्मिक शिक्षा
देसी पाठशाला 
हंटर आयोग की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं -

आयोग ने शिक्षा का उत्तरदायित्व भारतीयों को देने का सुझाव दिया जिससे देश में राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ।
आयोग ने भारतीय शिक्षा के विकास के लिए एक निश्चित नीति दी और 1854 के वुड घोषणा पत्र के द्वारा निर्धारित सिद्धांतों को  पुष्ट किया।
आयोग की सिफारिशों के परिणाम स्वरूप मुस्लिम शिक्षा, स्त्री शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा तथा हरिजनों एवं पिछड़ी जातियों आदि के शैक्षिक विकास में सहायता मिली।

हंटर आयोग की कमियां अथवा  दोष

आयोग की सिफारिशों में मौलिकता की कमी थी। सिफारिशें वुड डिस्पैच से ली गई थी।
आयोग ने मुसलमानों की शिक्षा के लिए प्रथक से सिफारिश की जिससे देश में सांप्रदायिकता उत्पन्न हुई।
आयोग ने व्यवसायिक शिक्षा तथा शिक्षक प्रशिक्षण पर बहुत कम ध्यान दिया।
सरकार के शिक्षा के क्षेत्र से हट जाने के कारण निजी विद्यालय इतनी तीव्रता से बड़े कि शिक्षा का विकास संख्यात्मक रूप से तो हुआ परंतु शिक्षा की गुणवत्ता घटने लगे, क्योंकि निजी प्रबंधकों ने शिक्षा को लाभ प्राप्त करने का साधन बना लिया था।

हंटर आयोग का भारतीय शिक्षा पर प्रभाव निम्नांकित प्रकार से पड़ा -

शिक्षा के समस्त स्तरों पर विद्यालयों की संख्या में अपूर्व वृद्धि हुई।
छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई।
शिक्षा का अधिक  प्रसार हुआ।
शिक्षा का भारतीय करण हुआ।
मिशनरियों ने अपना ध्यान नगरों की शिक्षा से हटाकर पिछड़े इलाकों की शिक्षा पर केंद्रित किया।
भारतीय शिक्षित वर्ग में शिक्षा के प्रति रुचि में वृद्धि हुई।
शिक्षा पुस्तकीय ज्ञान पर आधारित एवं  सैद्धांतिक बन गई।

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