भारत का इतिहास : भारत का प्रारंभिक मानव खोज

History of India
History of India : Early Human Discovery In History of India


History of India : Early Human Discovery In History of India

आरंभिक मानव की खोज
Early Human Discovery

History of India : आरंभिक मानव की खोज शीर्षक में हम जानेंगे कि पत्थरों से औजार जो है किस प्रकार के बने होते थे। इसके साथ ही हम जानेंगे पुरापाषाण पुरास्थल,  नवपाषाण पुरास्थल, महापाषाण पुरास्थल, और आरंभिक गांवों के बारे में।

पत्थरों से बने औजार प्राचीनतम औजार हैं। इन्हें लगभग 10000 साल पहले बनाया गया था। यह गुटिका प्राकृतिक पत्थर के बने होते हैं। इनका प्रयोग खाने योग्य जड़ों को खोदने और जानवर की खाल से बने  वस्त्रों को सिलने के लिए किया जाता था।

पुरापाषाण पुरास्थल में भीमबेटका, हूंसगी, और कुरनूल की गुफाएं प्रमुख है। वही नवपाषाण पुरास्थल में मेहरगढ़, बुर्ज होम, चिरांद, दाऊ जाली, हेडिंग,कोल्डीहवा, महागढ़, हल्लूर और पय्यामपल्ली प्रमुख हैं।  महापाषाण  पुरास्थल में ब्रह्मागिरी और आदिचैनल्लूर प्रमुख है। आरंभिक गांव में इनामगांव की श्रेणी प्रमुख है।

भीमबेटका आधुनिक मध्य प्रदेश में स्थित है। पाषाण उपकरणों को दो तरीकों से बनाया जाता था। पहला पत्थर से पत्थर को टकराना और दूसरा दबाव शल्क तकनीकी द्वारा। कुरनूल गुफा से आग की राख के अवशेष मिले हैं।

पुरापाषाण काल 2000000 साल पहले से 12000 साल पहले के दौरान माना जाता है। इस काल को तीन भागों में विभाजित किया गया है- आरंभिक, मध्य और उत्तर पुरापाषाण युग। मानव इतिहास की लगभग 99% कहानी इसी काल के दौरान घटित हुई है।

जिस काल में हमें पर्यावरण में बदलाव मिलते हैं उसे मध्य पाषाण युग कहते हैं। इसका समय लगभग 12000 साल पहले से लेकर 10000 साल पहले तक माना गया है। इस काल  के पाषाण औजार आमतौर पर बहुत छोटे होते थे। इन्हें माइक्रोलिथ यानी लघु  पाषाण कहा जाता है।

नवपाषाण युग की शुरुआत लगभग 10000 साल पहले से होती है। शैल चित्र कला के उदाहरण मध्य प्रदेश और दक्षिणी उत्तर प्रदेश में मिले हैं। भारत में पुरापाषाण युग के दौरान शुतुरमुर्ग होते थे। महाराष्ट्र के पटने पुरास्थल से शुतुरमुर्ग के अंडों के अवशेष मिले हैं।

History of India : भोजन संग्रह से उत्पादन तक

सबसे पहले जिस जंगली जानवर को पालतू बनाया गया वह कुत्ता था। लोगों द्वारा पौधे उगाने और जानवरों की देखभाल करने को बसने की प्रक्रिया का नाम दिया गया। कृषि के लिए अपनाई गई सबसे प्राचीन फसलों में गेहूं तथा जो आते हैं। उसी तरह सबसे पहले पालतू बनाया गया जानवरों में कुत्ते के बाद भेड़ बकरी आते हैं।

आइए कुछ अवशेषों की सूचियां देखते हैं-

गेहूं ,जो, भेड़, बकरी, मवेशी, यह सभी मेहरगढ़ से प्राप्त हुए हैं जो कि वर्तमान में पाकिस्तान में है।

चावल, जानवरों की हड्डियों के टुकड़े कोल्डीहवा से प्राप्त हुए हैं जो कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश में है।

चावल, मवेशी के खुर के निशान महागढ़ से प्राप्त हुए हैं जो कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश में है।

गेहूं और दलहन गुफाकाल से प्राप्त हुए हैं जो वर्तमान में कश्मीर में है।

गेहूं, दाल, कुत्ते, मवेशी, भैंस. भेड़, बकरी बुर्जाहोम से प्राप्त हुए हैं जो कि वर्तमान में कश्मीर में है।

गेहूं, हरे चने, जो, भैंस, बैल चिरांद से प्राप्त हुए हैं जो कि वर्तमान में बिहार में है।

ज्वार, बाजरा, मवेशी, भेड़, बकरी, सूअर हल्लूर से प्राप्त हुए हैं जो कि वर्तमान में आंध्र प्रदेश में है।

काला चना, ज्वार, बाजरा, मवेशी, भेड़, सूअर पोयम पल्ली से प्राप्त हुए हैं जो कि वर्तमान में आंध्र प्रदेश में है।

मेहरगढ़

यह ईरान जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण  रास्ता बोलन दर्रे के पास एक हरा भरा समतल स्थान है। यहां सर्वप्रथम इस्त्री पुरुषों ने जो, गेहूं उगाना और भेड़ बकरी पालना सीखा। यहां खुदाई में पुरातत्वविद को हिरण, सूअर, भेड़, बकरी जैसे मवेशियों और जानवरों की हड्डियां मिली हैं।

मेहरगढ़ में चौकोर तथा आयताकार घरों के अवशेष भी मिले हैं। प्रत्येक घर में 4 या उससे ज्यादा कमरे हैं। जिनमें से कुछ संभवत भंडारण के काम आते होंगे।

यहां पर कई कब्र भी मिली हैं जिन में मरे हुए लोगों के साथ कुछ सामान और जानवरों को भी दफनाया जाता था।

दाओजली हेडिंग

यह पुरास्थल चीन और म्यांमार  की ओर जाने वाले रास्ते में ब्रह्मपुत्र की घाटी की एक पहाड़ी पर है। यहां खरल और मुसल जैसे पत्थरों के उपकरण मिले हैं। इससे पता चलता है कि यहां के लोग भोजन के लिए अनाज उगाते थे। साथ ही जेडाइट पत्थर भी मिला है। संभवत यह पत्थर चीन से आया होगा। इसके अतिरिक्त इस पुरास्थल से काष्ठारम के औजार व बर्तन भी मिले हैं।

नवपाषाण युग के सबसे प्रसिद्ध पुरास्थलों में एक चटाल  तुर्की में है। इस युग में सीरिया से  चकमक पत्थर,  लाल सागर से कौड़िया, और भूमध्य सागर से सीपियां आयातित की जाती थी।

आरंभिक नगर

लगभग 150 साल पहले पंजाब में रेलवे लाइन बिछाने के दौरान हड़प्पा पुरास्थल मिला। जो अब आधुनिक पाकिस्तान में है। इन शहरों का निर्माण लगभग 4700 वर्ष पूर्व हुआ था।

ऊंचाई वाले भाग को  खोज कर्ताओं ने नगर दुर्ग कहा है और निचले हिस्सों को निचला नगर कहा है।

मोहनजोदड़ो के महा स्नानागार को बनाने में ईट और प्लास्टर का इस्तेमाल किया गया था और पानी का रिसाव रोकने के लिए चारकोल की परत चढ़ाई गई थी। कालीबंगा और लोथल जैसे अन्य नगरों में अग्निकुंड मिले हैं। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और लोथल जैसे कुछ नगरों में बड़े-बड़े भंडार गृह मिले हैं।

चर्ट पत्थर से बने बांटो का प्रयोग बहुमूल्य पत्थर और धातुओं को तौलने में किया जाता होगा। मनके कार्नेलियन पत्थर से बनाए जाते थे।

हड़प्पा के नगरों से पत्थर, शंख, तांबा, कासा, सोने और चांदी जैसी धातुओं से बनाई गई वस्तुएं मिली हैं। संभवत 7000 साल पहले मेहरगढ़ में कपास की खेती होती थी। पक्की मिट्टी तथा फेयांश यानी कि कृत्रिम पदार्थ से बनी तकलिया सूत कताई का संकेत देती हैं।

हड़प्पा में आयातित वस्तु क्षेत्र

हड़प्पा के समय में तांबा राजस्थान और ओमान से आता था।

टीन ईरान और अफगानिस्तान से आता था।

सोना कर्नाटक से आता था।

बहुमूल्य पत्थर गुजरात, ईरान और अफगानिस्तान से आते थे।

कच्छ के इलाके में खादिर बेट के किनारे धौलावीरा नगर बसा था। यहां साफ पानी और उपजाऊ जमीन उपलब्ध थी। लोथल नगर गुजरात की खंभात की खाड़ी में मिलने वाली साबरमती की एक उप नदी के किनारे बसा था। यह कीमती पत्थरों का महत्वपूर्ण केंद्र था।

लगभग 3900 साल पहले यह नगर नष्ट होने लगे। इसके लगभग 1400 साल बाद नए नगरों का विकास हुआ।

महत्वपूर्ण तिथियां

मेहरगढ़ में कपास की खेती लगभग 7000 साल पहले शुरू हुई थी।

नगरों का आरंभ लगभग 4700 साल पहले शुरू हुआ था।

हड़प्पा के नगरों के अंत की शुरुआत लगभग 3900 साल पहले हुई थी।

अन्य नगरों का विकास लगभग 2500 साल पहले हुआ था। 

History of India : हड़प्पा सभ्यता की विशेषताएं

हड़प्पा सभ्यता की विशेषताओं को हम निम्नांकित प्रकार से अध्ययन कर सकते हैं-

नगरों को दो अधिक भागों में बांटा जाता था। प्रायः पश्चिमी भाग छोटा और ऊंचाई पर था। और पूर्वी भाग बड़ा लेकिन निचले इलाके में था।

इस समय स्नान के साधनों का प्रयोग होता था जैसे तालाब और कुआं।

इस समय के लोग यज्ञ करते थे।

इस समय के लोग अनाजों का भंडारण भंडार गृह में करते थे।

घर नाले और सड़कों का निर्माण योजनाबद्ध तरीके से एक साथ ही किया जाता था।

नगरीय जीवन में कुछ लोगों का विशेष महत्व था जैसे शासक वर्ग, लिपिक वर्ग, शिल्पकार और कुमार इत्यादि।

हड़प्पा निवासी पत्थर  शंख, तांबे ,कासा, सोने, चांदी जैसे तत्वों से उपयोगी वस्तुएं बनाते थे।

हड़प्पा काल के लोग पत्थर की मोहर बनाते और उनका प्रयोग व्यापार में करते थे।

इस सभ्यता के लोग काले रंग से डिजाइन किए हुए लाल मिट्टी के बर्तन बनाते थे।

इसे सभ्यता के लोग कपास की खेती करना व सूत कताई करना जानते थे।

इस समय वास्तु निर्माण विशेषज्ञ उपलब्ध थे जो पत्थर  तराशना, मनके चमकाना, मुहर पर पच्चीकारी करना जानते थे।

बहुमूल्य वस्तुओं का आयात भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से करते थे।

हड़प्पा के लोग गेहूं जो दाल मटर धान तिल और सरसों  उगाते थे।

यह हल चलाना और सिंचाई के साधनों के प्राकृतिक प्रयोग जानते थे।

हड़प्पा के लोग गाय भैंस भेड़ और बकरी पालते थे।

यह मछलियां पकड़ना व शिकार भी करना जानते थे।

History of India : इसके अंत के कारण निम्नांकित माने गए हैं-

नदियों का सूखना।

जंगलों का विनाश।

चारागाह व घास वाले मैदानों की समाप्ति।

बाढ़। 

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