भारतीय संविधान : 1858 ईस्वी के बाद भारत में ब्रिटिश नीतियां और प्रशासन

1858 ईस्वी के बाद भारत में ब्रिटिश नीतियां और प्रशासन

British Policies and Administration in India

भारतीय संविधान:  इस लेख में हम यह जानेंगे कि 1858 ईस्वी के बाद भारत में ब्रिटिश नीतियां प्रशासन किस प्रकार से हैं जो भारत के लिए उपयोगी रहे या हानिकारक रहे जिनका विवरण मुख्य बिंदुओं के तहत किया जा रहा है और काफी संक्षिप्त रूप में आपको इसे जानने को मिलेगा।

1858 ईस्वी का एक्ट और इंग्लैंड  महारानी की घोषणा

सन 1858 के एक्ट द्वारा भारत में कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया गया। भारत गवर्नर जनरल को वायसराय की पदवी  प्रदान की गई। इसके साथ ही 1858 में लॉर्ड कैनिंग ने 1 नवंबर को इलाहाबाद में राज आज्ञा जारी की। उस समय वायसराय का मतलब ब्रिटिश शासक का प्रतिनिधि होता था।

इंग्लैंड से भारतीय सरकार पर नियंत्रण

1858 में भारत सचिव की सलाह के लिए एक इंडिया काउंसिल का गठन किया गया। 1870 ईस्वी में भारत और इंग्लैंड के बीच टेलीग्राफ संबंध स्थापित हो गए थे। 1869 ईस्वी में स्वेज नहर खुल जाने से भूमध्य सागर और लाल सागर एक दूसरे से जुड़ गए। ब्रिटिश सरकार का परिवर्तन होम गवर्नमेंट स्वदेशी सरकार में हो गया।

Indian Constitution :  भारत सरकार यानी कि इंडिया काउंसिल

भारत सरकार को इस समय इंडिया काउंसिल भी कहा जाता था। परिषद में गवर्नर जनरल समेत चार सामान्य सदस्य व मुख्य सेनापति होते थे। कानून निर्माण के लिए विधान परिषद या लेजिसलेटिव काउंसिल की व्यवस्था की गई थी। इसके साथ ही कार्यकारी परिषद और 6 अन्य सदस्य इंडिया काउंसिल में शामिल थे। जिनकी संख्या बाद में बढ़ाकर कार्यकारी सदस्यों की पांच कर दी गई और विधान परिषद सदस्यों की संख्या वृद्धि करके 12 कर दी गई। इंडियन काउंसिल में मनोनीत सदस्य राजा, जमीदार और व्यापारी होते थे। काउंसिल सदस्यों को  गवर्नर जनरल द्वारा मनोनीत किया जाता था।

बंगाल, मद्रास व मुंबई का प्रशासन गवर्नर और 3 सदस्यों की एक कार्यकारी परिषद देखती थी। केंद्रीय विधान परिषद को इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल कहा जाता था। 1861 में ब्रिटिश भारत के लिए बुनियादी ढांचा प्रस्तुत किया गया। 1892 में इंडियन काउंसिल एक्ट लागू किया गया जिसकी जो है दो महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं-

केंद्रीय विधान परिषद व प्रांतीय परिषद की संख्या में वृद्धि की गई और सदस्यों को प्रश्न पूछने व बजट चर्चा में भाग लेने का अधिकार दिया गया।

Indian Constitution : स्थानीय शासन

स्थानीय शासन की दो मुख्य बातें थी जो इस प्रकार हैं- पहला अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी के बाद नगरपालिका ओं का निर्माण किया गया और दूसरा 1882 ईसवी के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में जिला बोर्ड का गठन किया गया।

वित्तीय प्रशासन

1857 ईसवी के बाद वित्तीय प्रशासन का पुनर्गठन किया गया। केंद्रीय सरकार के द्वारा आय का साधन डाकघर, रेलवे, अफीम, नमक की बिक्री व चुंगी कर  थे। केंद्रीय और प्रांतीय राज्यों के बीच  आय का बंटवारा भू राजस्व और आबकारी से प्राप्त कर के माध्यम से होता था। अफीम, और नमक के उत्पादन व बिक्री पर कंपनी का एकाधिकार था। मुकदमा व व्यापार के लिए मुद्रांक शुल्क यानी कि इस टाइम ड्यूटी लगाया जाता था। 1882 में चुंगी समाप्त कर दी गई वह 1894 में पुनः लागू हुई। 1860 ईस्वी में आयकर लागू किया गया।

Indian Constitution : सेना का  पुनर्गठन

बंगाल, मद्रास और मुंबई प्रांत की अलग अलग  सेनाएं थी। 1859 में प्रांतों की सेनाओं का एकीकरण कर दिया गया।  ब्रिटिश सेना को सेनाध्यक्ष के नियंत्रण में लाया गया। भारतीय यूरोपीय सैनिकों का अनुपात 2:1 रखा गया  पुनः इसे बढ़ाकर  5:2 कर दिया गया। यह व्यवस्था 1914 में प्रथम विश्व युद्ध शुरू होने तक कायम  रही।

Indian Constitution : सिविल सर्विस

सिविल सर्विस को ब्रिटिश साम्राज्य का इस्पाती चौखटा कहा गया।  1853 में सिविल भर्ती प्रतियोगिता परीक्षाओं के जरिए होती थी। यह परीक्षाएं इंग्लैंड में आयोजित की जाती थी। परीक्षा में बैठने की उम्र 1853 में 23 वर्ष, 1866 में 21 वर्ष और 1876 में 19 वर्ष की गई।

1883 में  इल्बर्ट विधेयक के आने के बाद जोकि गवर्नर जनरल बिपिन द्वारा प्रस्तावित था, इसके माध्यम से भारतीय व यूरोपीय जजों के मध्य भेद समाप्त कर दिए गए। 1879 में नई  प्रशासकीय सेवा प्रारंभ की गई जिसमें भारतीयों की भर्ती शुरू की गई। 1886 के बाद 3 सेवाएं- इंडियन सिविल सर्विस केंद्रीय, बंगाल सिविल सर्विस  प्रांतीय, और एजुकेशनल सर्विस पेशेवर लागू की गई।

Indian Constitution : भारतीय राजाओं के प्रति ब्रिटिश नीति

भारत में रजवाड़ों की संख्या 1857 के बाद 562 हो गई थी। भारत को दो भागों में विभाजित कर दिया गया था ब्रिटिश भारत और भारतीय राज्य। 1876 ईसवी के  एक  कानून द्वारा ब्रिटिश प्रभु सत्ता की स्पष्ट घोषणा की गई। 1876 ईसवी के कानून के अधीन 1 जनवरी 1877 को महारानी विक्टोरिया को भारत की   महारानी की पदवी दी गई। गवर्नर जनरल कर्जन ने भारतीय राजाओं को बिना अनुमति विदेश जाने पर रोक लगा दी।

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