लैंगिक पूर्वाग्रह

लैंगिक पूर्वाग्रह

Gender Bias  

Child Development And Pedagogy : लड़कों तथा लड़कियों के विकास में उनकी लैंगिक विभिन्नता स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। लड़कियों का शारीरिक विकास लड़कों से एक या दो साल पहले होता है। 11 से 14 वर्ष की अवस्था के बीच में लड़कियां लड़कों की अपेक्षा अधिक लंबी और भारी हो जाती हैं, परंतु 15 वर्ष की अवस्था में लड़के अधिक तेजी से बढ़ने लगते हैं। वैसे तो व्यक्ति व्यक्ति के बीच  पाई जाने वाली भिन्नता एक सार्वभौम परिघटना है।  अतः प्रश्न यह उपस्थित होता है कि आखिर यह भेद संबंधी लक्षण कौन से हैं।

आज के लेख में हम समाज निर्माण में सहायक या उपस्थित लैंगिक मुद्दों और उनके मतभेदों के ऊपर बातचीत करेंगे। और यह जानने का प्रयास करेंगे कि एक बालक या बालिका के विकास के लिए लैंगिक मुद्दे किस प्रकार महत्वपूर्ण है और किस प्रकार एक अध्यापक लैंगिक मुद्दों में या उनके निवारण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

Child Development And Pedagogy : लिंग भेद

सर्वप्रथम यह जानने का प्रयास करेंगे कि लिंग भेद क्या है। लड़के और लड़कियों के बारे में समुदाय में कुछ भेद पाए जाते हैं। यह  भेद लिंग आधारित होते हैं। शारीरिक बनावट में अंतर के कारण लड़के और लड़कियों में समानताएं पाई जाती हैं जिसके कारण भेदभाव किया जाता है जिसे हम लिंगभेद कहते हैं।सामान्यतः यह देखा गया है कि लड़कों के साथ सामान्य अनुकूल व्यवहार किया जाता है और लड़कियों के साथ प्रतिकूल।
अतः लड़कों और लड़कियों के साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार के निम्नलिखित कारण है - 

शारीरिक बनावट - शारीरिक दृष्टिकोण से पुरुष अपने को महिलाओं से श्रेष्ठ समझते हैं। उनकी मान्यता है कि महिलाएं नाजुक होती हैं अतः उनकी देखभाल के लिए पुरुष की आवश्यकता होती है। साथ ही पुरुष कठोर कार्यों को संपन्न कर सकते हैं अतः सुरक्षा के दृष्टिकोण से महिलाओं को हमेशा पुरुषों की आवश्यकता होती है।

सामाजिक मान्यताएं - ज्यादातर भारतीय परिवार वृद्धावस्था में सुरक्षा,  मृत्यु उपरांत रूढ़ियों के निर्वाह, परिवार के प्रबंधन और वंश परंपरा बनाए रखने के लिए लड़कों का होना आवश्यक मानते हैं।

दहेज प्रथा का प्रचलन - लड़कियों को अभिभावक उच्च शिक्षा देने से कतराते हैं क्योंकि उस पर काफी खर्च आता है तथा शादी के समय उन्हें दहेज में भी काफी धन जुटाना पड़ता है।

कार्यों में भेदभाव - लिंग भेद के आधार पर समाज लड़की को लड़के से भिन्न समझ कर उसे निश्चित रूडिगर काम धंधे में लगा देते हैं जैसे शिक्षा के प्रसार के बावजूद भी लड़कियों के कार्य क्षेत्र सीमित हैं। जबकि लड़कों को शिक्षा या सेवा का क्षेत्र उनके अनुकूल माना जाता है और लड़कियों के लिए सेना पुलिस और राजनीति का क्षेत्र प्रतिकूल माना जाता है।

समाज पर पुरुषों का वर्चस्व - पुरुष वर्ग अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए महिलाओं पर नियंत्रण आवश्यक मानते हैं। बचपन में महिलाओं को पिता, यौवन अवस्था में पति तथा बुढ़ापे में पुत्र के अधीन रहना पड़ता है।
इन सभी  लैंगिक पूर्वाग्रह पूर्ण व्यवहार के कारण या लिंग भेद की वजह से बालिकाओं पर निम्नांकित प्रभाव पड़ते हैं - 

स्त्रियों की संख्या प्रति हजार पुरुषों की तुलना में कम हो गई हैं।
नवजात बालिकाओं की हत्या पर बालिकाओं की भ्रूण हत्या में वृद्धि हुई है।
शिक्षा के अवसर में असमानता।
संतुलित भोजन एवं स्वास्थ्य पर उचित ध्यान में कमी।
मनोरंजन तक महिलाओं की पहुंच में कमी।

Child Development And Pedagogy : अध्यापक की लिंग भेद में भूमिका

लड़कियों को शिक्षा के दौरान प्रोत्साहित करना होगा ताकि वह लड़कों के समतुल्य कौशलों का विकास कर सकें।
शिक्षण प्रक्रिया के दौरान विभिन्न सफल महिलाओं का दृष्टांत उपस्थित करना जो लड़कियों के लिए प्रेरणा स्रोत बने जैसे - खेल के क्षेत्र में साइना नेहवाल।

सरकार द्वारा लड़कियों की उचित शिक्षा के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं शुरू की गई हैं। उसे विद्यालय में मनोयोग से लागू करना चाहिए।

लड़कियों के व्यक्तित्व के विकास के लिए विशेष सहभागी क्रियाकलाप का आयोजन करना चाहिए।

लड़कियों पर अवांछित टिप्पणी से बचना तथा उनकी भावना का सम्मान करना चाहिए।

अभिभावक से संपर्क कर समाज में बालिकाओं की शिक्षा के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना चाहिए।
अतः हम कह सकते हैं कि शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ लिंग भेद आधारित भेदभाव में कमी आई है। सामाजिक जागृति एवं सामाजिक  सुरक्षा प्रदान कर शिक्षक इस भेदभाव को दूर कर सकते हैं।

Child Development And Pedagogy : लैंगिक भेदभाव के प्रकार

जाति के संदर्भ में लैंगिक मुद्दे - विभिन्न जातियों के समूह पर किए गए अनुसंधान से पता चलता है कि उच्च बौद्धिक मान्यता के क्षेत्रों जैसे तर्क, अवधान, अंतर्दृष्टि, निर्णय कुशलता में भेद प्रकट हुए हैं। इन भेदों का होना किसी क्षेत्र विशेष का भौगोलिक वातावरण, जलवायु, रहन-सहन का ढंग, सांस्कृतिक वातावरण, व्यक्ति के लंबे जीवन को इतना अधिक प्रभावित करता है कि उसके प्रभाव की अलग से जांच करना सरल कार्य नहीं है। इस प्रकार के भेदभाव पूर्ण तथ्यों के आधार पर जाति के संदर्भ में भी समाज में लैंगिक मुद्दे पाए जाते हैं और इनको भी लैंगिक पूर्वाग्रह की श्रेणी में ही रखा जाता है। इस प्रकार के लैंगिक मुद्दों में प्रत्येक जाति द्वारा समाज में अपने आप को हमेशा एक दूसरे से सर्वश्रेष्ठ घोषित करने का प्रयास किया जाता है। जो कि हमारे सामाजिक वातावरण इसमें और उन में पढ़ने वाले बालक बालिकाओं के विकास में अवरोध उत्पन्न करता है।
समूह भेद - समूह भेद का आधार कोई भी हो सकता है जैसे लिंग, अवस्था, जाति, सामाजिक आर्थिक स्तर तथा व्यक्तित्व। इस प्रकार के समूह भेद की जानकारी से हमको दैनिक जीवन की समस्याओं को सुलझाने में सहायता मिलती है। समानता आज के समय की मुख्य मांग है। इस समानता का संदर्भ समान शैक्षिक योग्यता, समान कुशलता, समान क्षमता, समान अधिकार, पढ़ाई तथा कार्य का समान अवसर से है। इस भेद से एक महत्वपूर्ण प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या महिलाएं शारीरिक लक्षण कौशल, जीवन मूल्य, दक्षता के आधार पर पुरुषों से कुछ भिन्न हैं या नहीं।
सामाजिक आर्थिक स्तर की दृष्टि से  लैंगिक  भिन्नता - विभिन्न सामाजिक आर्थिक स्तरों से संबंधित व्यक्तियों की औसत योग्यता, उपलब्धि और अभिरुचि में भिन्नता मिलती हैं। प्रायः देखा गया है कि कम औसत योग्यता वाले बालक प्राय खराब सामाजिक आर्थिक स्तर वाले लोगों के होते हैं। निम्न स्तर में उच्च आर्थिक स्तर के बच्चे कम ही होते हैं। जब आर्थिक स्तर को मापा जाता है तो इसे बुद्धि से संबंध किया जा सकता है । इन दोनों के बीच सहसंबंध 0.30 आता है। इसलिए शिक्षक ऐसा वातावरण उत्पन्न कर सकता है जिससे छात्रों पर सामाजिक आर्थिक स्तर का प्रभाव ना पड़े और उनका शैक्षणिक विकास होता रहे। छात्रों की संवेगात्मक समस्याएं भी सामाजिक आर्थिक स्तर को प्रभावित करती हैं।
व्यक्तित्व के संदर्भ में लैंगिक भेद - व्यक्तित्व के गठन में भिन्नता के कारण ही बौद्धिक आचरण, व्यवहार तथा उपलब्धि में अंतर आने लगता है। कुछ व्यक्ति बहिर्मुखी तथा कुछ अंतर्मुखी आचरण के होते हैं। किसी को अधिगम की एक विधि अच्छी लगती है तो दूसरे को अन्य विधि। इस प्रकार के बौद्धिक लक्षण तथा  गुण उसके विकास तथा मानसिक योग्यताओं की अभिव्यक्ति को अलग-अलग दिशाओं में प्रभावित कर सकते हैं।
आयु की दृष्टि से लैंगिक भिन्नता - आयु एक महत्वपूर्ण कारक होता है जो व्यक्तिगत भिन्नता को प्रभावित करता है। आयु की वृद्धि के साथ बालक और बालिकाओं दोनों में  विभिन्नता उत्पन्न होने लगती हैं। आयु वृद्धि के साथ व्यक्ति विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए योग्यताएं विकसित करता है जिससे वह वातावरण में अच्छा समायोजन स्थापित करता है । यह भी  भिन्नता किशोरावस्था की अपेक्षा बाल्यावस्था में अधिक दिखाई देती हैं।
कुछ मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि वृद्धि विशिष्ट आयु 15 से 16 वर्ष में रुक जाती है, जबकि अन्य का मानना है कि बुद्धि का विकास 20 या 25 वर्ष की अवस्था में बंद हो जाता है। परंतु शोध से यह ज्ञात हुआ है कि मानसिक क्षमताओं के अधिक प्रयोग करने से इन में वृद्धि होती है और पूर्वधारणा नष्ट हो जाती है। अर्थात विकास एक गतिशील प्रक्रिया है।

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