सुविधा प्रदाता के रूप में शिक्षक की भूमिका
Role of Teacher as Facilitator
Child Development And Pedagogy : आधुनिक युग में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण है। शिक्षक वह है जो हमें किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाता है। शिक्षक ही अपने विद्यार्थी को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करता है। एक शिक्षक का जीवन कई दीपों को प्रज्वलित करता है।
स्कूली शिक्षक के सामने बालक के जीवन को संवारने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है और प्रारंभिक शिक्षा से ही वह बालक के बचपन में ही जीवन की आधारशिला रखता है।
एक शिक्षक बालक के विकास में निम्न रूपों में भूमिका का निर्माण करता है -
Child Development And Pedagogy : सुविधा प्रदाता
सुविधा प्रदाता के रूप में शिक्षक की भूमिका होती है कि वह बच्चों को व सुविधाएं प्रदान करें जिससे बच्चे की योग्यता में विश्वास प्रकट हो। शिक्षक को निरंतर यह प्रयास करना होगा कि बच्चे कक्षा की गतिविधियों में सक्रिय रूप से हिस्सा लें ना की गतिविधियों के मुख दर्शक या श्रोता बनकर निष्क्रिय रहे हैं। एक सुविधा प्रदाता के रूप में शिक्षक निम्न कार्य करता है -
शिक्षक बच्चों को विषय ज्ञान के साथ-साथ अपने परिवेश के प्रति जागरूक बनाता है।
शिक्षक के लिए जरूरी है कि वह उदार चित और सहायता करने वाले हो।
छात्रों की समस्याओं व चुनौतियों का सामना करने के लिए आत्मनिर्भर बनाना।
शिक्षण संबंधी समस्याओं का निदान करना।
कक्षा शिक्षण में सहायक सामग्री का प्रयोग करना।
छात्रों की योग्यता और स्तर के अनुकूल शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए।
कक्षा के वातावरण को शिक्षण कार्य के अनुकूल बनाना।
शिक्षक एक सुविधा प्रदाता के रूप में अपने संसाधनों को साझा करके, छात्रों तथा सहकर्मियों को अनुदेशन सामग्री प्रदान करके, किताबें, व्यवसायिक लेख, मूल्यांकन सामग्री की सुविधा प्रदान करता है।
शिक्षक को विषय सामग्री सर्वश्रेष्ठ विधि से छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए।
समाज की आवश्यकता अनुसार शिक्षक को पाठ्यक्रम में महत्त्व के आधार पर पाठ का चयन करना चाहिए।
पाठ्यक्रम छात्रों के रूचि एवं उद्देश्य के अनुसार होना चाहिए।
शिक्षक को चाहिए कि पाठ को समय परिस्थिति और वातावरण के अनुसार पढ़ाएं।
अपना वर्ष भर का कार्यक्रम शिक्षक को तैयार कर लेना चाहिए।
शिक्षक को अपने छात्रों के प्रति प्रेम एवं सहानुभूति रखना चाहिए।
शिक्षक को छात्रों के प्रति जागरूक रहना चाहिए।
Child Development And Pedagogy : नेतृत्वकर्ता
शिक्षक समाज का प्रहरी होता है इसलिए एक शिक्षक को नेतृत्व का गुण विकसित करने के लिए उनमें सामाजिक परिपक्वता का होना बहुत ही आवश्यक है। शिक्षक को नेतृत्वकर्ता के रूप में मूल्यांकन करने और निर्णय लेने की आवश्यकता होती है ताकि विद्यालय कैसे चल रहा है और वहां सुधारों की आवश्यकता क्या है, यह वह समझ सके। वास्तव में विद्यालय में निर्णय लेने का अधिकार केवल प्रधानाचार्य के पास होता है। क्योंकि वह विद्यालय का नेतृत्वकर्ता होता है और उसी के आदेश से समस्त विद्यालय की कार्यवाही पूर्ण होती है। एक नेतृत्वकर्ता के रूप में शिक्षक की भूमिका निम्न प्रकार से होनी चाहिए -
शिक्षक को छात्र की शैक्षिक, सामाजिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से कितनी अच्छी तरह से प्रदर्शन कर रहे हैं, का ज्ञान होना चाहिए।
चुनौतियां एवं अवसर की पहचान करना शिक्षक का प्रमुख कर्तव्य है।
एक शिक्षक को समस्याओं के समाधान के लिए सामग्री व तथ्यों का मूल्यांकन करना चाहिए।
शिक्षक को छात्रों को ऐसे उत्तर दायित्व सौंपने चाहिए जिनके लिए वह सर्वथा उपयुक्त हो और उसमें विशेष योग्यता रखता हो।
बालकों को स्वतंत्रता का वातावरण प्रदान करें और उनमें आत्मनुशासन की भावना का विकास करें।
छात्रों में संकल्प शक्ति और समन्वय का विकास करें।
शिक्षकों को चाहिए कि छात्रों को उनकी छुपी हुई शक्तियों और योग्यताओं से परिचित कराएं और उनके विकास का उचित अवसर प्रदान करें।
छात्रों में आज्ञा पालन करने की आदत का विकास किया जाए।
शिक्षक को छात्रों के प्रति व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना चाहिए और एक संरक्षक की भूमिका निभानी चाहिए।
शिक्षक को आदर्श व्यवहार द्वारा अधिगम के मानक प्रस्तुत करना चाहिए।
शिक्षक को प्रेरणादायक कारक प्रस्तुत करना चाहिए।
बालकों में उचित आदतों का विकास करना चाहिए।
शिक्षक को स्वयं आत्म प्रेरित होना चाहिए।
Child Development And Pedagogy : मार्गदर्शक एवं निर्देशन
इसमें सबसे पहले हम मार्गदर्शक के रुप में शिक्षक की भूमिका के बारे में समझेंगे और तत्पश्चात निर्देशन के रूप में।
मार्गदर्शक के रुप में शिक्षक की भूमिका निम्न प्रकार से है -
छात्रों को संतुलित, शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक प्रगति में इस प्रकार सहायता देना कि वह अपने वातावरण के साथ संतोषजनक ढंग से समायोजित हो सके।
छात्रों का ध्यान लक्ष्य की ओर आकर्षित करके उसे प्राप्त करने के लिए प्रेरित करना।
सहानुभूति की सहायता से बालकों में न्याय प्रियता, सत्य प्रियता, देशभक्ति आदि स्थाई भाव का विकास करना चाहिए।
छात्रों की आवश्यकताओं से संबंधित विद्यालय के प्रयोजन एवं कार्य को समझने में सहायता देना चाहिए।
निर्देशन के रूप में शिक्षक की भूमिका तीन बिंदुओं के तहत समझी जा सकती है
शैक्षिक निर्देशन - शैक्षिक निर्देशन का अर्थ उस व्यक्तिगत सहायता से है, जो छात्रों को इस कारण प्रदान की जाती है कि वे अपने लिए उपयुक्त विद्यालय, पाठ्यक्रम, पाठ्य विषय एवं विद्यालय जीवन का चयन कर सके और उनसे समायोजन कर सकें।
स्वास्थ्य निर्देशन - छात्रों को स्वस्थ जीवन का महत्व बताना तथा हानिकारक आदतों को छोड़ने के विषय में उचित परामर्श देना ही स्वास्थ्य निर्देशन कहलाता है।
प्राथमिक स्तर पर बच्चे गीली मिट्टी की तरह परिवर्तनीय व्यक्तित्व का होता है इसे परामर्श के द्वारा सर्वांगीण विकास के लिए तत्पर किया जा सकता है।
परामर्श शिक्षा में आवश्यक प्रयोग, अपव्यय और अवरोधन को रोकना, अधिगम के प्रभावी अधिग्रहण हेतु आवश्यक है।
छात्रों से संबंधित सूचनाएं एकत्रित करने में सहायता करना।
कूसमायोजित छात्रों का पता लगाकर परामर्शदाता के पास भेजना।
मंद गति से अधिगम वाले छात्रों को उचित परामर्श देना।
पाठ्य सामग्री क्रियाओं के चयन में छात्रों की सहायता करना।
संकलित आलेख पत्र तैयार करने में सहायता करना।
छात्रों को इस प्रकार सहायता देना कि वह स्वयं अपना मूल्यांकन कर सकें।
बाल अपराधियों के सुधार हेतु परामर्श देना ।
Child Development And Pedagogy : परामर्शदाता
शिक्षकों द्वारा बालकों की समस्याओं के समाधान के लिए उसे वैज्ञानिक राय की आवश्यकता होती है यह वैज्ञानिक राव या सुझाव ही परामर्श कहलाते हैं। छात्र परामर्श का संबंध शैक्षिक जीवन को प्रभावित करने वाली समस्याओं से होता है। यह छात्र के संपूर्ण व्यक्तित्व को ग्रहण करता है। जब छात्र अपनी समस्या का समाधान करने में असफल रहता है तब शिक्षक छात्र की समस्या के समाधान के लिए उचित मार्गदर्शन करता है। अतः एक शिक्षक की परामर्शदाता के रूप में भूमिका निम्न प्रकार से है -
परामर्श शिक्षा में आवश्यक प्रयोग, अपव्यय और अवरोधन को रोकना, अधिगम के प्रभावी अधिग्रहण हेतु आवश्यक है।
छात्रों से संबंधित सूचनाएं एकत्रित करने में सहायता करना।
कूसमायोजित छात्रों का पता लगाकर परामर्शदाता के पास भेजना।
मंद गति से अधिगम वाले छात्रों को उचित परामर्श देना।
पाठ्य सामग्री क्रियाओं के चयन में छात्रों की सहायता करना।
संकलित आलेख पत्र तैयार करने में सहायता करना।
छात्रों को इस प्रकार सहायता देना कि वह स्वयं अपना मूल्यांकन कर सकें।
बाल अपराधियों के सुधार हेतु परामर्श देना ।
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