आज़ादी के 75 वर्षों में उत्तर प्रदेश का योगदान

आज़ादी के 75 वर्षों में उत्तर प्रदेश का योगदान (Contribution of Uttar Pradesh in 75 years of Independence)


इस बार हम आज़ादी के 75 वे साल में प्रवेश करने जा रहे है। आज़ाद भारत के इन 75 सालों के लिए हमारे वीर योद्धाओं  कड़ा संघर्ष किया है , कुर्बानियां दी है। आइये , इस स्वतंत्रता दिवश पर हम इनके बलिदानो को याद करें और उन्हें नमन करें।  
आज़ादी के 75 वर्षों में उत्तर प्रदेश का योगदान भी काफी महत्वपूर्ण रहा है।  जिसको हम भुला नहीं सकते। आज यहाँ पर हम उत्तर प्रदेश का आज़ादी में क्या योगदान रहा है , इसके बारे में संक्षिप्त रूप में जानने का प्रयाश करेंगे। 

अमीनुद्दौला पार्क लखनऊ 


अमीनुद्दौला पार्क आज़ादी के क्रांतिकारियों का अड्डा था। अमीनाबाद स्थित इस पार्क में आज़ादी के बाद पहली बार तिरंगा फेरया गया था। अगस्त 1935 में क्रन्तिकारी गुलाब सिंह लोधी भी इस पार्क में झंडा जुलुश में शामिल थे।
३० नवंबर 1928 को साइमन कमिशन के विरोध में यहाँ सभा हुई थी।  जिसे पंडित मोतीलाल नेहरू और गोविन्द वल्लभ पंत ने सम्बोधित किया था। 
26 जनवरी 1930 को कांग्रेस का प्रतिज्ञा पत्र यहाँ पढ़ा गया। जिसमे यह नैरा दिया गया था की "स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है ", यही नहीं 18 अप्रैल को विराट जनसभा में कानून को तोड़कर लखनऊ वासियों ने नमक बनाया था।
16 जून 1930 को मिताई विश्वाश और रामेश्वर प्रसाद ने पार्क में झंडा फरया था। 16 जुलाई 1930 को सरदार जोगेंद्र सिंह , सरदार हरदत्त सिंह और सरदार  राम सिंह को झंडा फेरते हुए पकड़ा गया था और उन्हें 6 माह की जेल भी हुई थी। 
जनवरी 1928 में इस पार्क को झंडे वाला पार्क के रूप में जाना जाने लगा था। अमीनुद्दौला पार्क को इमदाद बाग़ के नाम  से भी जाना जाता था। 

दिलकुशा कोठी लखनऊ  

दिलकुशा कोठी भी 1857  स्वतंत्रता  की साक्षी रही है। दिलकुशा कोठी का निर्माण नवाब सआदत अली खान ने 1789 से 1814 के बीच कराया था। पेड़ पौधों से घिरी यह कोठी आरामगाह के रूप में प्रयोग होती थी। अंग्रेज मेजर फ़ोर्ब्स ने अपनी डायरी  कोठी की विशेस्ता के साथ ही युद्ध का भी जिक्र किया है। 
इस कोठी के पास काले हिरणो की संख्या अधिक थी जिसे अंग्रेज मार कर कहते थे। 
उलटी डस्ट से परेशान हेनरी हेवलॉक  का निधन दिलकुशा कोठी में ही  हुवा था। आलमबाग कोठी में इसकी कब्र आज आज भी मौजूद है। 

काकोरी स्टेशन 

9 अगस्त 1925 को लखनऊ से कुछ किलोमीटर दूर काकोरी ट्रेन एक्शन की नीव  पड़ी। आंदोलन को गति देने के लिए 7 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर में क्रांतिकारिओं ने एक बैठक की,जिसमे चंद्र शेखर आज़ाद,राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी,सचिन्द्र नाथ बख्शी,मन्मथ नाथ गुप्ता शामिल थे। यह बैठक राम प्रसाद बिस्मिल के नतृत्वा  थी।  इस बैठक में अंग्रेजी सर्कार के खजाने से 4600 रूपये लूट की योजना बनी जो की एक ट्रैन से आ रहे थे। काकोरी स्टेशन  नज़दीक खजाना लूटा गया। जिसमे दिसंबर 1925 से अगस्त 1927 तक लखनऊ के रोशनदौला कचेहरी  फिर बाद में रिंक थिएटर में यह मुकदमा दो चरणों में चला। 

गूंगे नवाब पार्क लखनऊ 

गूंगे नवाब पार्क में महात्मा गाँधी अज़्ज़ादी के आंदोलन के समय दूसरी बार 8 अगस्त 1921 को लखनऊ  आये थे। और गूंगे नवाब पार्क में स्वदेशी का प्रचार किया था। 

चारबाग स्टेशन लखनऊ 

राजधानी में जंग ऐ अज़्ज़ादी का बिगुल फुकने के लिए कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित हुआ था। 1916 में कांग्रेस के अधिवेशन में हिस्सा लेने पहली बार महात्मा गांधी जी राजधानी आये थे। चारबाग में ही पहली बार महात्मा गांधी जी की मुलाकात पंडित जवाहर लाल नेहरू हुई थी। उनके स्वागत के लिए बाल गंगाधर तिलक के अलावा कई कांग्रेसी मौजूद थे। 

G P  O पार्क लखनऊ काकोरी स्तम्भ 

9 अगस्त 1925 को लखनऊ से कुछ किलोमीटर दूर काकोरी ट्रेन एक्शन की नीव  पड़ी। आंदोलन को गति देने के लिए 7 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर में क्रांतिकारिओं ने एक बैठक की,जिसमे चंद्र शेखर आज़ाद,राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी,सचिन्द्र नाथ बख्शी,मन्मथ नाथ गुप्ता शामिल थे। यह बैठक राम प्रसाद बिस्मिल के नतृत्वा  थी।  इस बैठक में अंग्रेजी सर्कार के खजाने से 4600 रूपये लूट की योजना बनी जो की एक ट्रैन से आ रहे थे।
G P  O पार्क लखनऊ काकोरी स्तम्भ काकोरी काण्ड के क्रांतिकारिओं चंद्र शेखर आज़ाद,राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी,सचिन्द्र नाथ बख्शी,मन्मथ नाथ गुप्ता सहित अन्य क्रांतिकारिओं  सुनवाई के स्थल का गवाह है। 

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